” नम पलकों की कोर “
गीत
बनते -और , बिगड़ते देखा
संबंधों , का दौर !
अँधियारे – को , रोज समेटे ,
उजली उजली भोर !!
बदले बदले , मापदंड हैं ,
जुड़े न , मन के तार !
अपना अपना , हित साधे हैं ,
मिले न , निश्छल प्यार !
रहा- दिखावा , कोरा कोरा ,
मचता है , बस शोर !!
कहाँ प्रीत , अब पावन पावन ,
बिखरे – बिखरे , जाल !
है उन्माद , पसरता लागे ,
रोज बज रहे ,ताल !
मर्यादा तो , तार – तार है ,
टूट रही है , डोर !!
हया -आँख से , उतरी उतरी ,
घटता है नित ,मान !
आँसू के , कतरो में बहती ,
मधुर मधुर , मुस्कान !
अधिकारों की , घटती सीमा ,
चले न- कोई , जोर !!
विश्वासों का, कहाँ धरातल ,
हिलते- सब ,आधार !
रोज पोंछते , आँसू झूंठे ,
झूँठी है , मनुहार !
अंतरंगता ,ठहरे -पल को ,
हाथ न आता , छोर !!
साथ छोड़कर , नई राह लें ,
नहीं ठहरते , पाँव !
यादों से -अब , मिलन रोज है ,
खेल -गये जो , दाँव !
भीगे भीगे , नयन अगर तो ,
नम -पलकों की , कोर !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )