जिस्म से जान जैसे जुदा हो रही है...
आदरणीय क्या आप ?
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
शाम हो गई है अब हम क्या करें...
सजदे में झुकते तो हैं सर आज भी, पर मन्नतें मांगीं नहीं जातीं।
तुम्हारा इक ख्याल ही काफ़ी है
हसरतें हर रोज मरती रहीं,अपने ही गाँव में ,
चलो मतदान कर आएँ, निभाएँ फर्ज हम अपना।
तुमसे मोहब्बत हमको नहीं क्यों
प्रथम मिलन
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
'गुमान' हिंदी ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
आजकल की औरते क्या क्या गजब ढा रही (हास्य व्यंग)
खिलेंगे फूल राहों में
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
*संपूर्ण रामचरितमानस का पाठ : दैनिक रिपोर्ट*
देश से दौलत व शुहरत देश से हर शान है।
*कहां किसी को मुकम्मल जहां मिलता है*
बाबा साहब एक महान पुरुष या भगवान