नम आँखे
आँखें नम तो ठिठुरती हवाओं की भी हुआ करती हैं
तभी तो ओंस बन के फूलों पे गिरा करती हैं
कौन जाने ये आँसू हैं या शबनम के मोती
ये किसका दर्द लेके हवाऐं बहा करती हैं
आखिर इन हवाओं को किससे मुहब्बत हो गई
मौसम ने इनसे कुछ कहा क्यों इनकी आँखे भर गई
क्या चाँद इनको भा गया या खाब टूटा था कोई ?
या तन्हाई के आलम में ये रात इनको खल गई?