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28 Jul 2023 · 1 min read

नमन मंच

नमन मंच विषय- मुक्तक ——————————-
“सच तो बादलों की बरसात से मन का रिश्ता हमारा था।……
हां बरसने वाली, काली घटाएं बादलों के रुप से पलकों में किया तेरा सामना हर बार कुछ रिश्ता बन गया था। हम वहां न रोक पाए एक बार भी “”प्यार की जादूगरी का वो बाजीगर जो मेरे साथ रहता था। बस गीली -गीली बूंदों का एहसासों में वो रहता था।
हां झर झर बह जाते है आंखों से अश्क ” कुछ बूंदे बरस कर मेरी
प्यास बढ़ा कर वो चली जाती,बस
यही तेरी मेरी सिर्फ याद बना कर चली जाती थी बदरा हां हम जलते हुए जिस्मों को जलाकर खुश हो जाती थी।
हमारी आंखों से बनकर बूंद जो बनी मोती बरस जाती थी”!.………
सच तो बदरा बादल मन की यादों में कसक सी रह जाती थी।

नीरज अग्रवाल चन्दौसी उत्तर प्रदेश

Language: Hindi
1 Like · 240 Views

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