क्षणिका
क्षणिका
प्रत्युषा
सागर तट…
धरा गगन का मिलन ।
मिले इक दूजे से नयन।
चांद ने की सरागोशी,
निशा मुस्कुराई ।
सपनों के आगोश में
जिंदगी ने ली अंगड़ाई।
चांदनी की विदाई ।
सुहानी भोर आई।
ऊषा ने
प्रिय के __
तन – मन में ,
आस जगाई।
कान में फुसफुसाई ,
प्रियतमा
कुछ समय
की है
ये जुदाई।
हम फिर मिलेंगे
सांई।
विभा जैन (ओज्स)
इंदौर ( मध्यप्रदेश)