*नब वर्ष तेरा अभिनमदन*
आये हो नव वर्ष ख़ुशी हो ,करूँ मैं तेरा अभिनंदन।
खड़ा हुआ हूँ लिए द्वार पे ,सजा थाल रोली चन्दन।।
सम्मुख आओ बढ़कर थोड़ा
माथे तिलक लगाऊं ।
नतमस्तक हो चरण छुंउँ मैं
पुलकित हो लहराउँ ।।
तोड़ो जग के फिर तुम आके, सींते हुए बाधा बन्धन।।
वेरुखियों के मरु स्थल में
उगाओ क्यारियां हरियाली ।
झूम जहां कर भृमर जैसी
जोग पियें मधु की प्याली ।
मुरझाई डालों पर तुम , आ पराग बिखेरो मधुनन्दन ।।
सुखी करो संसार मनाएं
लोग घर में मिल दिवाली
दूर दूर तक पार क्षितिज के
खिले घरों में रवि लाली ।
आंन जगाओ अलख निरंजन,सुखी रहें सब जन जन।।
सोई हुई सुप्त व्यथा को
ढककर और सुला दो ।
दुर्गंनधाती सभी दिशा को
मधु मकरन्द पिला दो ।।
बिखरा दो चहुँ दिशि अम्रत सम,कर करके फिर मंथन ।
अन्धकार में दिखे ना कोई
डूब स्याही में कोई कोना ।
कर दो चारो ओर उजाला
कहीं सुनाई दे ना रोना ।
हुंकारों हर जन में आके , दूर गमों को कर के गुंजन।।