नफ़रत
क्या कर सकते हो ज़रा सोचो,नफरत को कैसे मिटा तुम सकते हो।
हर दिल में जो जबरन धड़क रही है,क्या इसको हटा तुम सकते हो।।
भाई भाई के खड़ा विरुद्ध क्या भाइयों को गले मिला तुम सकते हो।
खत्म हो गया भाईचारा भाई से भाई की नफ़रत को भगा तुम सकते हो।।
जगत में एक भाई कम तो दूसरा उससे ज्यादा या कम ही कमाता है।
कम और ज्यादा के चक्कर में भाई भाई की नफरत का शिकार हो जाता है।।
दुराचारी इस सभ्य समाज में केवल,नफरत की आग फैलाता है।
असभ्यता बढ़ती जाती है और सभ्य, चाहकर भी कुछ कर नहीं पाता है।।
वर्षों से देश की सरहदों पर नफरत के बाजार लगाए जाते हैं।
लेकिन अब देश के हर घर में क्यों नफरत के शोले पाये जाते हैं।।
जातिवाद के नाम पर देश में धर्म युद्ध और दंगे फैलाए जाते हैं।
नफ़रत फैलाने वालों के द्वारा ही मंदिर मस्जिद पर प्रश्न उठाये जाते हैं।।
कहे विजय बिजनौरी दुनिया वालों सोचो और नफ़रत से बाहर आओ।
सबसे बड़ा है भाईचारा दुनिया में बस भाईचारे को ही फैलाओ।।
विजय कुमार अग्रवाल
विजय बिजनौरी।