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18 May 2020 · 1 min read

नन्हे पांव

तपती शड़क है और पांव हैं नन्हें कोमल से
मंजिल है अभी दूर छांव नजरों से ओझल से

कि चल पड़े हैं कुछ लोग शहर से गांव की ओर
मिल जाय कहीं शायद जो अच्छे दिन है ओझल से

फूलों के इस सफ़र पे भी हंस रहें हैं चंद मरे लोग
दिल नहीं सीने में जिनके और आंखें है बोझिल से

काश बरस जाय अब अब्र इन आखों की नमी लेके
फूलों,कलियों को जाना है दूर लेकर बदन कोमल से
~ सिद्धार्थ

Language: Hindi
5 Likes · 407 Views
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