…नन्हीं परी
क्यों कोख में ही
हो जाता भेदभाव
उस अजन्मी बच्ची से
जो कोख से प्रस्फुटित हो …..
अंकुरित होने को है व्याकुल
इस गर्भ गृह से
निकलने की उसकी अभिलाषा
पाना चाहती वो नन्हीं परी
ममत्व की शीतल छाया
उसे रौंद देना चाहता है
ये मानव प्रजाति का ही
संकीर्ण मानसिकता का दानव
क्यों ऐसा घृणित कृत्य कर
खुद का ही परिहास उड़ाता
जिस कोख से सृष्टि रचती
उसी स्त्री पर क्यों..
इतने घातक प्रहार
इस लिंग भेद की खाई ने
बना दी रिश्तों में दीवार
इस खाई में दम घुटता
उस नन्हीं अजन्मी बच्ची का
लेने दो उसे भी सांस
इस खुली स्वछंद हवा में
कमला शर्मा