नन्हीं छोटी चिड़ियारानी
नन्हीं छोटी चिडियारानी
पंख तुम्हारे पीले धानी
चूं चूं करके कुछ कहती हो
अपनी धुन में खुश रहती हो
चिडियारानी माह जून का
बढ़ा रहा है ताप खून का
क्यों घर के बाहर रहती हो
सूरज का आतप सहती हो
समझ गया मैं चिडियारानी
ढूंढ़ रही हो दाना पानी
दूँगा तुम्हें चोंच भर दाना
ठहरो मैं लाता हूँ खाना
खाओ रोटी चार निबाला
पानी पियो बिस्लरी वाला
खुद भरपेट यहीं पर खाना
फिर घर पर भी लेकर जाना
चिडियारानी धूप बहुत है
सुंदर तेरा रूप बहुत है
सुंदर पंख सुनहरे वाले
तपकर अगर हो गए काले
शायद पता चले ना तुझको
अच्छा नहीं लगेगा मुझको
अपने घर का पता बताना
पहुंचा दूँगा पूरा खाना
या फिर रह लो मेरे घर पर
डलवा दूँ छोटा सा बिस्तर
हवा यहीं कूलर की खाना
गर्मी में बाहर मत जाना
संजय नारायण