Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
27 Feb 2017 · 5 min read

नन्द लाल छेड़ गयो रे

उस जमाने में नंदलालों को छेड़ने के सिवा कोई काम नहीं था |सरकारी दफ्तर ही नहीं होते थे, जहाँ बेगारी कर ली जाए |अगर ये दफ्तर भी होते तो चैन की बंसी बजईय्या टाईप लोग, कुछ देर काम करते और ‘एक नम्बर’ के बहाने साहब को अर्जेंसी का वास्ता देकर, तालाब पोखर की तरफ खिसक लेते |उस ‘खुले शौच’ के जमाने में इतनी छूट तो मिल ही जाती थी |वे पनघट-ब्रांड लड़कियों को इशारे-विशारे करना खूब जानते थे | उन दिनों इत्मीनान इस बात का होता कि; किसी प्रकार के एक्ट का चलन नहीं था; सो खतरा भी बिलकुल नहीं होता था |एफ आई आर,, नाम की कोई चिड़िया खुले आकाश में दूर-दूर तक उड़ा नहीं करती थी |खाखी,-खद्दर वाले लोग भी किसी बात को ‘इशु’ बनानें के नाम पर ,गली-गली ‘मुद्दे’ सुघियाते नहीं फिरते थे| क्या मजे का जमाना था ……?
बाद के दिनों में ,खाखी, खद्दर, टोपी, झंडे ने देश की ‘वाट’ लगा दी….!
आपने इस ‘वाट’ को ‘जेम्स वाट’ की तरह, दिमागी रेल इंजन दौडाने के फिराक में, अब पकड़ ही लिया, तो तफसील भी जानिये |
ये आपका बुनियादी ,प्रजातंत्रीय हक़ भी है, कि जिसने ‘वाट’ कहा है उसे वह एक्सप्लेन भी करे|
‘वाट’ को इधर मै छोटे-मोटे उठाईगिरी टाईप के लफड़ों में इस्तेमाल कर रहा हूँ, जो राजनीति के दैनिक क्रियाकलापों का हिस्सा बन गया है मसलन ,|नेता वादा करके वादाखिलाफी न करे ,’खाखी’ अगर माँ बहनों वाली डिक्शनरी न खोले ,’टोपी’ अगर झांसा न दे ,’झंडे’ को कोई लाठी के बतौर, उसे उठाने वाला, चलाना न जाने तो आजकल प्रजातंत्र के पाए डगमगाए से लगते हैं |’बड़े वाट’ पर बात करने का जमाना ,दिन-बादर हैं नहीं |मुफ्लिसिये पर दस करोड़ की मानहानि वाली बिजली गिर गई तो, अपना कुनबा ही साफ हो जाएगा… ?
नब्बू एक दिन मायूस सा आया |भइय्या जी मजा नहीं आ रहा है …..|उसके इस कथन के पीछे मुझे किसी नए किस्म की खुराफात के पर्दाफाश होने का आभास, छटी इन्द्रिय के मार्फत , तुरन्त हुआ सा लगा |मैंने खीचने के अंदाज में कहा, जिन्दगी के ‘तिरसठ -पूस’ ठंडाये रहे, तुम्हे भुर्री तापते कभी न देखा आज कौन सी आफत आ गई जो कंडा सकेलने निकल गए …. बोलो …..?
भइय्या जी, बात ये है कि आजकल की राजनीति में दम नहीं है | हम रोज अखबार पढ़ते हैं ,आप भी देखे होंगे ….न छीन झपट,न जूतम पैजार …. न किसी के अन्गदिया पैर उखाड़े जाते ,न एक दूसरों की सरे आम वस्त्र उतारने की बात होती |सब सन्नाटे में बीत जाता है |अपने मुनिस्पेलटी इलेक्शन में ही देखो लोग खड़े हुए, न झगड़े न सर-गला कटा|कोई पेटी उठाने का दम भरते नहीं दिख पाता |किसी जमाने का वो सीन भी याद है जब मवाली, कोठे में नोट लुटाने की तर्ज और स्टाइल में, बेलेट को धडाधड छापता और कह देता, बता देना ‘छेनू’ आया था|छेनू नाम का सिक्का चला के जीत-हार हो जाती थी |मतदाता को दस-बीस जो मिल जाता ,उसे वह पाच सालाना बोनस बतौर स्वीकार कर लेता |कोई शिकायत या उलाहना देने की नौबत कब आती थी ? वैसे भी उन दिनों पानी लोग कम इस्तेमाल करते थे ,शौच-नहाना-धोना तालाब किनारे हो जाता था इस वजह घरों में पानी बहने बहाने या नाली की समस्या न थी |बच्चों को स्कूल में इतना पढ़ा दिया जाता कि रात को उनको सबक-होमवर्क करने की जरुरत न पड़ती थी, इसलिए बिजली की भी दरकार नहीं थी| नेता की चरण-पूजाई का स्कोप कम या नहीं के लगभग था |उन्हें कोई हारे या जीते से सारोकार नहीं होता था |
नब्बू ने आगे बताया ,भइय्या खबर है, अपने धासु बेनर्जी जो बड़े डाइरेक्टरों में गिना जाता है, अपने मिस्टर आजीवन कुआरे कन्हईया को लेकर पुरानी और नई तहजीब पर फ़िल्म बना रहे हैं |पांच हजार साल पहले की याददाश्त अपने हीरो को दिला बैठे हैं |उसका दिल नदी नालों पोखरों के आसपास मंडराते रहता है|हर नदी में फ्लेश्बेक है|रईस बाप हर कीमत पर अपने बेटे को इस फ्लेश्बेकिया बीमारी से निजात दिलाने के लिए उसके मुरादों वाली सीन एक्ट्रेस लंगोटिया कामेडियन सेट बनवा के रखता है, किसी ने उसे सुझाया यूँ तो आप पैसा पानी की तरह बहा ही रहे हैं तो क्यों न इसे शूट करके साउथ डब वाली फ़िल्म की शकल दे दी जाए |रईस को सुझाव उम्दा लगा सो पहले उसके बीमार लड़के के शौक का रिह्ल्सल होता है फिर उसी सेट में आजीवन कुआरा फिट हो जाते |
“कंकरिया मार के जगाया’ इस गाने के बोल फिल्माने के लिए बुलडोजर से कई किलोमीटर कांक्रीट रास्ते को उखाड़ कर, बजरी-पत्थर-कंकर डाले गए|हीरो ने एक कंकर उठा के मटकी फोडी सब निशाने की वाह-वाह में लग गए |हिरोइन इसी पलो की याद में, फूटे-मटके पर सर रख के अपने सोये(प्रेम में अज्ञानी) होने का प्रलाप कर रही है |
इंटर तक, पाच हजार पुराने मटका फोडू को तत्व-ज्ञान मिल जाता है |अक्सर ये अचानक बिना साइंटिफिक रीजन के तत्व-ज्ञान मिलाने वाला अक्षम्य-अपराध अनेकों फिल्मी-स्क्रिप्ट की जान है और बाक्स आफिस में हजार करोड़ कमाने का नुस्खा भी है अत: किसी के पापी पेट को लात न मारते हुए आगे बढ़ते हैं|
मटका फोडू हीरो, पहले मटका-किंग फिर बाद में, बाप की अंडर वर्ड वाली रियासत को सम्हालता है | उसे घेरे रहने वाले उसे किग-मेकर बा जाने की सलाह दे डालते हैं, जिसे पूरी तन्मयता के साथ वो निभाता है |डाइरेक्टर उसे ग़रीबों के साथ हंसना-खेलना सिखलाने के लिए विदेश ले जाता है |किसी के घर मातम में कौन सा मुखौटा होना चाहिये, इसकी बाकायदा तालीम दिलवाता है |भाषण के बीच लोगों से प्रश्न क्या पूछे कि, जवाब ‘हाँ’ में निकले,कब बाह चढा कर भाषण में अपनी भुजा दिखाना है, इन छोटी-छोटी हरकतों पर गौर करने को कहता है |
‘नन्दलाल’ जिसे आधुनिक हीरो बनाया अपनी पुरानी यादों को अचानक संसद में ताजी कर लेता है |बड़े-बड़े सांसदों मंत्री-मंत्राणी, किसी को नहीं छोड़ता |सबकी मटकी में उसे माखन होने का संदेह रहता है |मलाई खाते हुए वे लोग जो अब तालाब पोखर की ओर आना भूल गए उनके लिए वो खुद इन्साफ का कंकर लिए छेदने-छेड़ने के लिए तैयार दिखता है |
इति फ़िल्म पटकथा समाप्त |डाइरेक्टर, राइटर, हीरो हजार करोड़ की उम्मीद में |कुछ अति उत्साही आस्कर में ले जाने के लिए फार्म भी खरीदे लाये है |भगवान जाने आगे क्या हो ….?
नब्बू की बेसिरपैर की कथा का विस्तार, अगले एपीसोड में फिर कभी …तब तक आप सेफ रहें ……
सुशील यादव

Language: Hindi
Tag: लेख
424 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
एक हसीं ख्वाब
एक हसीं ख्वाब
Mamta Rani
हरकत में आयी धरा...
हरकत में आयी धरा...
डॉ.सीमा अग्रवाल
बेजुबाँ सा है इश्क़ मेरा,
बेजुबाँ सा है इश्क़ मेरा,
शेखर सिंह
हम
हम
Ankit Kumar
चंद्रयान 3
चंद्रयान 3
Dr.Priya Soni Khare
*बताओं जरा (मुक्तक)*
*बताओं जरा (मुक्तक)*
Rituraj shivem verma
लिखू आ लोक सँ जुड़ब सीखू, परंच याद रहय कखनो किनको आहत नहिं कर
लिखू आ लोक सँ जुड़ब सीखू, परंच याद रहय कखनो किनको आहत नहिं कर
DrLakshman Jha Parimal
क़दर करके क़दर हासिल हुआ करती ज़माने में
क़दर करके क़दर हासिल हुआ करती ज़माने में
आर.एस. 'प्रीतम'
अगर कोई आपको गलत समझ कर
अगर कोई आपको गलत समझ कर
ruby kumari
🌲दिखाता हूँ मैं🌲
🌲दिखाता हूँ मैं🌲
सुरेश अजगल्ले 'इन्द्र '
23/82.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/82.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
मोदी जी का स्वच्छ भारत का जो सपना है
मोदी जी का स्वच्छ भारत का जो सपना है
gurudeenverma198
Touch the Earth,
Touch the Earth,
Dhriti Mishra
इश्क खुदा का घर
इश्क खुदा का घर
Surinder blackpen
आई आंधी ले गई, सबके यहां मचान।
आई आंधी ले गई, सबके यहां मचान।
Suryakant Dwivedi
नये गीत गायें
नये गीत गायें
Arti Bhadauria
मिलकर नज़रें निगाह से लूट लेतीं है आँखें
मिलकर नज़रें निगाह से लूट लेतीं है आँखें
Amit Pandey
सच है, दुनिया हंसती है
सच है, दुनिया हंसती है
Saraswati Bajpai
"बहरापन"
Dr. Kishan tandon kranti
बीन अधीन फणीश।
बीन अधीन फणीश।
Neelam Sharma
होगे बहुत ज़हीन, सवालों से घिरोगे
होगे बहुत ज़हीन, सवालों से घिरोगे
Shweta Soni
निगाहें
निगाहें
Shyam Sundar Subramanian
नया साल
नया साल
'अशांत' शेखर
सच्ची बकरीद
सच्ची बकरीद
Satish Srijan
इंसान फिर भी
इंसान फिर भी
Dr fauzia Naseem shad
फितरत
फितरत
Mukesh Kumar Sonkar
*रामपुर रियासत में बिजली के कनेक्शन*
*रामपुर रियासत में बिजली के कनेक्शन*
Ravi Prakash
🥀 *अज्ञानी की कलम*🥀
🥀 *अज्ञानी की कलम*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
■ आज का शेर दिल की दुनिया से।।
■ आज का शेर दिल की दुनिया से।।
*Author प्रणय प्रभात*
साथ चली किसके भला,
साथ चली किसके भला,
sushil sarna
Loading...