नदी सा जीवन
***** नदी सा जीवन *****
***********************
जीवन नदी सा बहता रहे,
गाथा जहां में कहता रहे।
सब कुछ समेटे तल में सदा।
यूं नीर फिर भी चलता रहे।
ऊँचे पहाड़ों से है चले,
है शान से पथ कटता रहे।
जल धार धीरे – धीरे बढ़े,
सारा सफर भी घटता रहे।
है जानता मनसीरत कथा,
ये दीप बुझता – जलता रहे।
**********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)