नदी जोड़ो का सपना
भारत में नदी जोड़ो अभियान का सपना एक सौ साल से भी ज्यादा पुराना है। सन् 1900 के दशक में अंग्रेज इंजीनियर आर्थर कॉटन ने भारत की नदियों को जोड़ने की परिकल्पना की थी। इसका उद्देश्य नदियों के अतिरिक्त जल से बड़ी-बड़ी नहरों का निर्माण कर जल मार्गों में वृद्धि करके ब्रिटिश सरकार की व्यावसायिक सुविधाओं का विस्तार करना था। ताकि उड़ीसा सहित दक्षिण भारत के सूखे से उत्पन्न समस्याओं से निपटा जा सके। उनकी योजना अतिरिक्त जल भेजकर भविष्य में कृषि उत्पादनों में वृद्धि करना भी था। लेकिन इस कार्य में भारी लागत आने के अनुमान के चलते यह आगे नहीं बढ़ सका।
सन् 1947 में भारत आजाद हुआ। फिर राष्ट्र- निर्माण की योजनाएँ बननी आरम्भ हुई। सन् 1970 में इंदिरा गांधी की सरकार में बांध बनाने वाले इंजीनियर डॉ. के.एल. राव सिंचाई मंत्री बने। फिर उन्होनें आर्थर कॉटन के सपनों से धूल झाड़ कर इंदिरा जी के समक्ष रखा।
सिंचाई मंत्री इंजीनियर डॉ. के.एल. राव की सोच थी कि हिमालयन नदियों में ग्लेशियरों के पिघलने के कारण गर्मियों के दिनों में अतिरिक्त जल होने से बाढ़ आ जाती है। इसके विपरीत प्रायद्वीपीय नदियाँ गर्मियों में सूख जाती हैं और वर्षा काल में बाढ़ आती है। ऐसी स्थिति में इन दोनों प्रकार की नदियों को आपस में जोड़ देने से ग्रीष्म काल में भी जल की उपलब्धता बनी रहेगी। इसे इंटर बेसिन रिवर लिंकिंग कहा गया। सन् 1980 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने इस योजना को आगे बढ़ाने के लिए NDRD की रिपोर्ट तैयार करवाई। फिर वित्तीय व्यवस्था बनाने की शुरुआत की गई। सन् 1982 में नेशनल वाटर डेवलपमेंट अथॉरिटी का गठन किया गया। यह नदी जोड़ो अभियान का प्रथम चरण था।
सन् 1999 में एन.डी.ए. की सरकार आई। प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई ने योजना के स्वरूप को बदल कर इंटर बेसिन को इंट्रा-बेसिन परियोजनाओं में बदल दिया। किन्तु सन् 2002 में जनहित याचिका (PIL) लगने से यह रुक गई। पश्चात सन् 2004 में डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने इस परियोजना को फिर से वास्तविक स्वरूप इंटर बेसिन योजना के रूप में जीवित करके व्यापक अध्ययन कराया।
सन् 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया कि नदियों की इंटर लिंकिंग का फैसला नीतिगत है, और इसे सरकारें ही लागू करें। ततपश्चात इसे गति प्रदान कर विभिन्न राज्यों के मध्य नदी जल बँटवारा विवादों के निपटारे, पर्यावरणीय जोखिम एवं इको सिस्टम को पहुँचने वाली नुकसानों को सुलझाते हुए सन् 2021 में केन-बेतवा योजना को कैबिनेट की स्वीकृति मिली। इसका भूमि पूजन प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किया गया। अब यह योजना आकार ले रही है।
इसप्रकार नदी जोड़ो अभियान के सपने के साकार होने का श्रेय किसी एक को नहीं जाता। इसका श्रेय इंदिरा गांधी, अटल बिहारी बाजपेई, डॉ. मनमोहन सिंह एवं नरेन्द्र मोदी- सभी को संयुक्त रूप से जाता है। वास्तव में महान सपनों के फलीभूत होने में सैकड़ों वर्षों की तपस्या शामिल होती है।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
टैलेंट आइकॉन : 2022
हरफनमौला साहित्य लेखक।