नदियों का दर्द
नदियाँ ओ मेरी नदियाँ
क्यों धीमी सी लगती है,
आज तेरी यह रफ्तार !
क्यों सुस्त-सुस्त सी लगती है
आज तेरी यह धार!
क्या भूल गई है तू अपनी
पहले वाली मस्तानी चाल!
क्या भूल गई तू अपनी
लहरो की पहले वाली उछाल!
क्यों थकी -थकी सी लगती हो,
तुम मुझको आज!
किस बात का गम है तुझे
क्यों हो तुम इतनी उदास!
क्यों पहले वाला, जैसा तेज
तेरे चेहरे पर नही है आज!
तेरा चाँदी जैसा दिखने वाला पानी,
क्यों मैला दिख रहा आज!
क्यों सुरज की किरणों से
बनने वाला सुनहरा सितारा
तेरे जल पर मध्यम-मध्यम सा
दिख रहा है मुझको आज।
क्यों तेरा कल – कल का स्वर
धीमा सुनाई देता है आज!
क्यों तेरी वह मस्तानी लहर
पहले जैसे नहीं उठती है आज!
क्यों बुझी – बुझी सी दिखती हो
हर समय तुम मुझको आज।
तेरी वह अल्हड़ सा रूप
कहाँ खो गया है आज!
तेरी वह लहराती हँसी ने
क्यों मौन साध लिया है आज!
हर समय क्यों तुम मुझको
मुरझाई सी लगती हो आज!
ऐसा लग रहा जैसे तुम,
खुद में ही सिमटती जा रही हो आज ।
क्यों तुम ऐसे हार मानकर
धरती से सुखती जा रही हो आज!
क्यों तुम अपने आकार को
छोटी करती जा रही हो आज।
क्यों तेरे चेहरे पर हँसी नही
दिखती है आज।
ऐसा लग रहा जैसे तुम
बहुत बीमार रहती हो आजकल।
बता न नदियाँ,बता न मुझको
तुम्हें क्या हुआ,
कौन सी बात है जो इतना
तुमकों सता रही है आज।
नदियाँ बोली सुन मेरे बेटी
मैं तुमसे क्या कहूँ मे आज !
यह सब तुम सबका
ही तो किया धरा है।
पहले तुम सब मुझे
माँ का दर्जा देते थे।
मेरे जल को पावन रखकर
मेरा सम्मान करते थे ।
सारे जीव-जन्तु मेरे
पानी को पीकर
अपना प्यास बुझाते थे।
जीवनदायिनी समझ कर तुम सब,
मेरा सम्मान करते थे।
पहले मेरे पानी मैं किसी तरह का
कोई गंदगी नही था।
क्योंकि मेरे पानी के अंदर
कोई कचरा नही डालता था।
मेरा पानी शुद्ध और निर्मल
हर समय हुआ करता था।
जिसके कारण मेरे पानी मैं
कोई भारीपन नही था।
लेकिन अब जब तुम
सबने ने मिलकर
मेरे शुद्ध पानी को गंदगी
डालकर मैला कर दिया है।
अब इस गंदे पानी को लेकर
बहने में, मैं थक जाती हूँ ।
जिस कारण मै आजकल
बुझी-बुझी सी रहती हूँ।
रहा सवाल चाँदी जैसे रंग का
वह अब कहा से मैं लाऊँ
जब तुम सब ने मिलकर
मेरे पानी को मैला कर दिया।
अब इस मैले पानी पर मै
कैसे सुरज की किरणों का
वह सुनहरी सितारा दिखलाऊँ।
कैसे मे कल-कल का मीठा स्वर
तुम सब को मै सुनाऊँ।
इस गंदे पानी का बोझ
मैं कितना अब उठाऊँ।
इसको लेकर कैसे अब मे!
ऊँची-ऊँची लहरे लगाऊँ ।
वह मस्त लहर अब मै कैसे
फिर से तुम सब को दिखलाऊँ।
पहले वाली मस्तानी चाल,
वह मैं अब कहाँ से लाऊँ।
रहा सवाल मेरे आकार का
उसको मैं अब कैसे बढ़ाऊँ।
जब मेरे चारो तरफ तुम सब ने।
कुड़ा-कचड़ा भर दिया है।
मेरे पानी मैं तुम सब ने
जो इतना जहर घोल दिया है
उस पीकर कैसे अब,
मैं कैसे स्वस्थ रह पाँऊ!
अब तुम ही बताओं न बेटी
मैं कैसे खुश हो जाऊँ
जब मै अपने अंदर के जहर को
पीकर खुद बीमार रहने लगी हूँ।
अपने अन्दर मैला भरकर
कितना मै जी पाऊँगी।
इस सिसकी भरी साँस को
मैं कितना और थाम पाऊंगी
ऐसे अगर तुम सब मेरे
पानी को गंदा करते रहे
तो कुछ दिनों में इस धरती से
दम तोड़ जाऊँगी।
इसके बाद तुम सबका
क्या होगा।
यह सोचकर मै रहती हूँ
उदास।
~अनामिका