*नदिया किनारे मेरे गाँव में*
नदिया किनारे मेरे गाँव में
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पीपल की सघनी छाँव मे,
नदिया किनारे मेरे गाँव में।
नहर किनारे हम चलते थे,
कांटे चुभते थे नंगे पाँव मे।
सीधे-साधे सादे पहरावे में,
दुनिया बहती थी भाव में।
गली-गली घूमते बाजार में,
सैर सपाटा पोखर नाव में।
जो मन में वही जुबान पर,
झुक जाते थे प्रेम दवाब में।
बाग -बगीचे और उद्यान में
जिंदा रहते थे गहरे चाव में।
फूलों से खिलते मानसीरत,
कांटे बेशक हो गुलाब में।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)
जन्नत कलरव ठहराव में।