नज्म- बने रखवाले थे।
जब तक होंठों पे, लगे ताले थे,
आंखों में अश्को के भरे प्याले थे।
न देती चैन से जीने यह दुनिया,
दिल में जख्मों के पड़े छाले थे।
पार कर ली हर इम्तिहां दर्द की,
नही मिलते दवा के निवाले थे।
हर तरफ यूँ ही छाया रहता अंधेरा,
नहीं दिखते राहत के उजाले थे।
टूट गयी ये ख़ामोशी खुद फिर,
सच्चाई के लफ्ज़ जब निकाले थे।
दीप जलाया उम्मीद का जब से,
हौसलें और विश्वास बने रखवाले थे।
By:Dr Swati Gupta