(नज़्म ) हमसफर न रहा
हम सफर मे रहे
हमसफर न रहा
चाहतों का यहाँ
कुछ असर न रहा ।
यूँ ही उड़ते रहे
फड़फड़ाते हुये
बैठना जिस पे चाहा
वह शज़र न रहा ।
हमने चाहा बहुत
डूबना तो मगर
ताकते रह गये
वह भँवर न रहा ।
अब तो बदले से
लगते हैं मंज़र यहाँ
जाने खो गईं गली
वह शहर न रहा ।
यूं भटकते रहे हम
हर इक मोड़ पर
राह चुभती रही
अब गुज़र न रहा ।।
गीतेश दुबे ” गीत “