नज़्म – चांद हथेली में
नज़्म – चांद हथेली में
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चांद यूं आसमां पर
तन्हा अकेला है
चांदनी यूं जमी पर
तन्हा अकेली है…
फिजा में खुद को
खुद से खोजता हूं
ये अनबूझी सी दुश्वारी
तड़प पर सोचता हूं
खुदा, देख
इश्क भी क्या अजब
पहेली है …..
चांदनी यूं जमी पर
तन्हा अकेली है…
ख्वाब ये तुम्हारे
साथ चलते हैं मेरे
तसव्वुर तेरा
शाम – शब ओ सवेरे
सिलसिला यूं ही चले
साथ चलती प्यार की
दुल्हन नवेली है….
चांदनी यूं जमी पर
तन्हा अकेली है…
फिजा में देखो
खुशबुओं का डेरा है
तुम्हारी याद ने लो
फिर मुझको घेरा है
तुम्हारी हंसी
तुम्हारी बात दिल को भाती
कानों में मेरे यूं
मिश्री सी घोली है….
चांदनी यूं जमी पर
तन्हा अकेली है…
फिर से वो जज्बात जुड़ें
खुदा से फरियाद करो
पिछली मुलाकात को
तुम भी कुछ तो याद करो
तुम्हारे मुखड़े को
जो छुआ मैने
लगा चांद को थामे
मेरी हथेली है ….
चांदनी यूं जमी पर
तन्हा अकेली है…
चांद आसमान पर
तन्हा अकेला है
चांदनी यूं जमी पर
तन्हा अकेली है ॥
– अवधेश सिंह