नजरिया-ए-नील पदम्
उगलो छिड़को कितना भी गरल,
ये स्वभाव मेरा पर है अविरल,
थक जाओगे तुम विष दे देकर,
मैं वही मिलूंगा फिर भी सहकर,
मन से निश्छल सपाट सरल ॥
@ नील पदम
०७-०३-२०१८
उगलो छिड़को कितना भी गरल,
ये स्वभाव मेरा पर है अविरल,
थक जाओगे तुम विष दे देकर,
मैं वही मिलूंगा फिर भी सहकर,
मन से निश्छल सपाट सरल ॥
@ नील पदम
०७-०३-२०१८