नक़ली असली चेहरा
धोखा खाते खाते, धोखे का इल्म जाता रहा
हम तो मासूम हैं ,जो भी मिला बतलाता रहा
ये तो पक्का था , ये भी कोई झूठ ही होगा
सच्चा मानकर इसे , मैं ख़ुद को भरमाता रहा
नक़ली हैं क़समें , वायदे भी वही नक़ली
इरादे मेरे पक्के, पलकें राहों में बिछलाता रहा
एक खलल है ,”सागरी” जो सीने से अलग नहीं होता
मंज़िल पूछी तो नया रास्ता हर कोई बतलाता रहा
डा राजीव “सागरी”