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29 Dec 2021 · 1 min read

नकली बाघ(देशभक्ति कविता)

नकली बाघ /देशभक्ति कविता

रे बाघ ! मत दाँत निपोर ,
तेरे दाँत से गंध आती है ,
जो खाया है पशुओं को ,
उन निरीह पशुओं को
जो थे बेजुबान ,पर अब सचेत हो
पशु भी बोलते हैं
यदि उम्मीद नहीं, तो चला लेना पंजा,
डटकर तेरे खाल पर लिखेगा ,
तो बाघ नहीं ,तू बकरी का बच्चा है ,
दाँत क्या है, कितना होता है दम,
कभी भी बता सकता है,
पर इसे चने चबाने की आदत है ,
तेरे जैसे पशुओं का मांस नहीं
क्या बताऊं मानवता
इंसान और बेईमान की
शुरू से ही चुना है तुमने
रास्ता बेईमान की,तरक्की है कहाँ
तेरे इतिहास में,तेरे पहचान की
तेरे नवीन ज्ञान की,तेरे अरमान की ।।

नेतलाल यादव
चरघरा नावाडीह, जमुआ,गिरिडीह, झारखंड, पिन कोड-815318

Language: Hindi
1 Like · 601 Views

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