नए साल की पहली शाम
September 12, 2022
सोचा था इस साल ज़िंदगी,
जिएंगे हम बिंदास ज़िंदगी।
पर रब को ये मंज़ूर न था।
होने को कुछ और ही था।
उसकी नज़र मिली नज़रों से।
कुछ बोली नाज़ुक, अधरों से।
बस इतने में, जो न होना था।
हुआ वही, आख़िर जो होना था।
साल की पहली शाम न पूछो।
उस पगली का नाम न पूछो।
उसकी हसीं और उसकी बातें
हाय, कटेंगी कैसे रातें।
नए साल की पहली शाम।
चंचल मृग नैनी के नाम।