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13 Sep 2022 · 1 min read

नए साल की पहली शाम

September 12, 2022

सोचा था इस साल ज़िंदगी,

जिएंगे हम बिंदास ज़िंदगी।

पर रब को ये मंज़ूर न था।

होने को कुछ और ही था।

उसकी नज़र मिली नज़रों से।

कुछ बोली नाज़ुक, अधरों से।

बस इतने में, जो न होना था।

हुआ वही, आख़िर जो होना था।

साल की पहली शाम न पूछो।

उस पगली का नाम न पूछो।

उसकी हसीं और उसकी बातें

हाय, कटेंगी कैसे रातें।

नए साल की पहली शाम।

चंचल मृग नैनी के नाम।

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