नई सत्ता—ग़ज़ल
लों सत्ता के शबाब का नया मौसम आ गया
कहते थे बाहर से, अब चखने का समां आ गया
न जाने कितना दर्द सहा था लोगों ने आम के लिए
केजरीवाल को सिरमौर बनाने का समां आ गया
तुम क्या थे, क्या क्या किया था, कल तक तुमने
सारी छान बीन करने का अब मेरा मौसम आ गया
बड़ा सताया था आम आदमी,को तुमने चुनाव से पहले
अब मेरी सरकार बन्नने का समां नजदीक आ गया
आम आदमी की पार्टी को, आम समझना हुआ मुश्किल
अब आम मेरे और तुम्हारा ,गुठली खाने का मौसम आ गया
पब्लिक का समर्थन , और उन का साथ निभाने का
और सत्ता से गुंडा गर्दी ,भागने का मौसम आ गया
अपने कर्मो का हिसाब तो सब, को देना ही पड़ेगा अब
कितना दम है मुझमे , यह दिखाने का मौसम आ गया
अजीत कुमार तलवार
मेरठ