नई पीढ़ी
आज नई पीढ़ी के
बहुत से युवा
फॅंसते जा रहे हैं,
एक ऐसे जाल में
जिसे सुलझाना तो दूर
सुलझने के प्रयास में
उलझना हीं उलझना है।
उन्होंने पकड़ लिया है
नशे का दामन
जिसके आगोश में
जिंदगी की ऊष्मा कहाॅं?
सिर्फ एक छलना है।
पैसे की हवस ने
बना दिया है उन्हें
मशीन सिर्फ मशीन।
एक ऐसी मशीन
जिसे सिर्फ चलना है।
हृदय में है उनके
एक वीरान मरुस्थल
भावशून्य रेत का।
स्नेह का निर्झर
तो उनके लिए कल्पना है।
शामिल है वे सब
एक ऐसी दौड़ में
जिसमें एक क्षण के लिए
उनका रुकना, रुकना नहीं
उनका मरना है।
काश! समझ पाए वे
जिंदगी का अर्थ
प्रकृति का मर्म
मानवीय धर्म
अन्यथा यह जीवन
उनके लिए मृग मरीचिका है
और धीरे-धीरे उनके हाथ से
सब कुछ फिसलना है।
प्रतिभा आर्य
चेतन एनक्लेव
अलवर (राजस्थान)