*नई दुकान कहॉं चलती है (हिंदी गजल)*
नई दुकान कहॉं चलती है (हिंदी गजल)
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1)
नई दुकान कहॉं चलती है
कमी ग्राहकों की खलती है
2)
श्रम के आराधक के आगे
विपदा हाथों को मलती है
3)
सच्चे दिल से काम किया तो
बुरी बला फौरन टलती है
4)
आग बुझा दो चाहे जितनी
चिंगारी फिर भी पलती है
5)
अमर शहीदों की कुर्बानी
बन मशाल जैसी जलती है
6)
समझदार से ढोंगी हारा
दाल कहॉं उसकी गलती है
7)
जो सीधा-साधा है जग में
दुनिया उसको ही छलती है
8)
कहॉं रेत में नाव चली है
पूड़ी घी में ही तलती है
9)
बुरे साधनों से धन-दौलत
कहॉं किसी को कब फलती है
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 1 5451