नई तकदीर
नई तकदीर
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चलो फिर से इस देश की ,
नई तकदीर हम लिखते हैं ।
देखा था स्वप्नें कभी, जो उन वीरपुत्रों ने ,
हो हर हाल में, इस देश की तस्वीरें स्वर्णिम ।
संजोया था कभी , लहु देकर शहीदों ने ,
रहे सदा अखंडित भारत के, सपने अप्रतिम ।
चलो फिर से उन सपनों की, तसदीक हम करते हैं…
चलो फिर से इस देश की ,
नई तकदीर हम लिखते हैं…
याद करें हम शहीदों के ,शहादत की उन कहानी को ,
अर्पित कर दिया प्राणों को, किस तरह देकर चिंगारी वो ।
चीखते रह गए, हर बदहवास चेहरे वो ,
कभी रचते थे इस देश में, षड़यंत्र गहरे जो ।
मिटाकर, दुश्मनों की हर साजिश को शहीदों ने ,
कभी मिटने नहीं दिया, मुफलिसी में अपने इरादों को।
चलो , उन नेंक इरादों की राह चलकर ,
फिर से कुछ ,नई लकीर हम खिंचते है…
चलो फिर से इस देश की ,
नई तकदीर हम लिखते हैं…
बांटने की तो, हुकूमत की आदतें है ही पुरानी ,
पर अब हम, न बटेंगे कभी ।
बस इतनी सी तो है, कसमें बस खानी।
सियासत के भुजंगो से, बचकर रहना है सदा हमको ,
उनके बदनीयती को जो ,अब हमें है खाक मे मिलानी ।
यही ख्वाहिशें फक़त, दिल में लिए ,
वतन पे कुर्बान, हम खुद को करते हैं…
चलो फिर से इस देश की ,
नई तकदीर हम लिखते हैं…
छोड़ दो अश्कों को अब, मुफ्त में यूंँ ही लुटाना ,
खबर हो कमबख्त दिल को ,आँसू है कब-कब बहाना ।
चैन से लिपटे रहे ये अभी,इन खुश्क आँखों में ।
सैलाब की तब जरूरत पड़ेगी,
जब स्वप्न उज्जवल दीप प्रज्वल, सुरमयी धरती सजेगी।
दानवता का नाश होगा, हर्षित मन आकाश होगा।
अरमान यही दिल में लिए ,
हम ख्वाब फिर से बुनते हैं…
चलो फिर से इस देश की ,
नई तकदीर हम लिखते हैं…
देख लो इस जहाँ का, सूरत-ए-हाल हकीकत में ,
सिमटती गई हिन्द की सीमाएं , तब से ही निरन्तर ,
बढ़ चला था, जब से धरा पर,
फरेबियों का साम्राज्य गिन-गिनकर ।
मिट जाएगी ये जहाँ , किसी दिन यहाँ,
धरा से यदि, आतंक का मंज़र नहीं थमता।
कसम खाते हैं पूरे मन से,अब हम मिलजुलकर,
आतंक के नापाक इरादों को, मिटाकर फेंक देंगे हम ।
ये वतन हमारा है,खुलेआम जग को, अभी पैगाम देते हैं…
चलो फिर से इस देश की ,
नई तकदीर हम लिखते हैं…
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २७ /०२/ २०२२
फाल्गुन ,कृष्णपक्ष ,एकादशी ,रविवार ।
विक्रम संवत २०७८
मोबाइल न. – 8757227201