कहां गायब हुए हो तुम कन्हैया लौट अब आओ।
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
कहां गायब हुए हो तुम कन्हैया लौट अब आओ।
बिछाए आंख हम बैठै जरा हम पर तरस खाओ।
बहुत सा खेल खेला है रचायी रास लीला भी,
तड़पते गोप औ ग्वाले इन्हें ढाढस बंधा जाओ।
तरसते कान सुनने को मुरलिया तान अब हमरे,
यहां आकर के गिरधर अब मुरलिया तो बजा जाओ।
बिना आंखों रहित तो क्या यहां आंखों भी वाले तो,
हुए आसक्त जन-जन हैं इन्हें अब मुक्त कर जाओ।
वहां बस एक दुर्योधन हरा था चीर नारी का,
यहां हर रोज हरते हैं इन्हें आकर के निवटाओ।
विमुख जब हो गया अर्जुन बजी संग्राम की वेणी,
दिया था ज्ञान गीता का , हमें भी आज समझाओ।
हुआ है घोर संकट अब करोना नाग के कारण,
जगत कल्याण की खातिर इसे तुम आज नथ जाओ।
सुबह से हम सभी वंदे तुम्हारे दर्श के भूखे,
रखें हैं भोग छप्पन भी जरा आकर के चख जाओ।
थकीं हैं आंख विरहन की अटल कैसे बयां कर दे,
भरी है पीर ही दिल में इसे आकर के सहलाओ।