ध्यान कर हरी नाम का
ध्यान कर हरी नाम का,
क्यो तुझकों है गुमान किसका ?
जर्जर होगी काया एक दिन,
सुन्दर रूप रूठें मोह माया तुझसे,
धन और दौलत काम ना आये,
जो ना गिराया झूठा अभिमान ।
ध्यान कर हरी नाम का,
क्यो तुझकों है गुमान किसका ?
नफरत इतनी ना कर जग में,
क्रोध से ना मिटता बैर यहाँ पर,
बाँट सके तो प्रेम है करना,
मिल जुल कर इस जग में रहना।
ध्यान कर हरी नाम का,
क्यो तुझकों है गुमान किसका ?
करना ऐसा काम रे !
मीठे बोल सभी से कहना,
करना दान है महान जग में,
परहित करना निःस्वार्थ सदैव !
रचनाकार
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।