धृतराष्ट्र–विदुर संवाद
धृतराष्ट्र–विदुर संवाद
रे विदुर ! गुमराह नै कर मन हमर
ये कदाचित ज्ञात की परिणाम आयत!
ज्ञात अछि भीमक बलक अक्रांता केँ
हँ मुदा तखनों सुयोधन नै परायत!
कर्ण सन् योद्धा मरल छै कम की?
सूर्य पुत्रक मोह छोड़ि कोना नुकायल?
प्रश्न अछि लाखों मुदा अछि एक उत्तर
कृष्ण छथि बस कृष्ण अहि रणभू म छायल।
रे विदुर ! गुमराह नै कर मन हमर
ये कदाचित ज्ञात की परिणाम आयत!
युद्ध के परिणाम कृष्णक दास अछि…
मौन में मध्यम गति अट्टहास अछि…
केँ लड़त परमेश्वरक प्रताप सँ?
कृष्ण केँ कण कण में उर्जित बास अछि।
रे विदुर ! गुमराह नै कर मन हमर
ये कदाचित ज्ञात की परिणाम आयत!
कृष्ण सृष्टि केँ सकल उत्थान थिक
कृष्ण पालक केँ अमर सम्मान थिक।
केँ लड़त संग्राम हुनकर सामने?
अछि अहि सूची में कोनों नाम नै।
रे विदुर ! गुमराह नै कर मन हमर
ये कदाचित ज्ञात की परिणाम आयत!
युद्ध भूमि दूर सँ कथ्यक सुहावन।
आ निकटता अछि मृतक शब समागन।
युद्ध कोनों बचपनक नै खेल मानू।
युद्ध विरक वीरता सम मेल मानू।
युद्ध कोनों पर्व पावनि केँ दिवस नै
युद्ध कोनों गाछ के हंँसेत कलश नै।
युद्ध सम्यक शेष के विध्वंश करता।
आ अकारण अनगिनत मानुष मरता।
रे विदुर ई कृष्ण के चेतावनी छल।
आब वंशक ध्वंस पर अछि यादि आबेत!
रे विदुर ! गुमराह नै कर मन हमर
ये कदाचित ज्ञात की परिणाम आयत!
©®दीपक झा “रुद्रा”