धूल
धूल उडी उड़ बैठ गयी,
कँहा बैठ गयी कुछ पता नही।
जब उड़ती थी तब द्र्ष्य हुयी,
जब बैठ गयी तब दिखी नहीं।
कोई तेज हवा का झोंका था,
जिसने ही उसे उड़ाया था।
उसका भी कोई अस्तित्व है,
इस जग को फिर दिखलाया था।
जब हवा रुकी तब धूल रुकी,
जिस मिट्टी से वो निकली थी,
उस मिट्टी में वो बैठ गयी।
कँहा बैठ गयी कुछ पता नही।