धूप छांव जिंदगी
धूप है घनी कभी छांव कभी जिंदगी।
है कभी शहर,गली,गाँव कभी जिंदगी।।
दस्तकें त्योहार की ,तंग हाथ,जेब भी।
टूटती गुल्लकें,थके पाँव कभी जिंदगी।।
कभी बहार ये बनी, कांटों में गुलाब सी।
रातरानी बन खिली घर ठाँव कभी जिंदगी।।
दौड़ती हुई चली,झुकी,उठी दरख़्त सी।
कुहुक कूक कोयली,काँव कभी जिंदगी।।
अतिरेक भावनाओं का,आंसू आंसू है कभी।मुस्कराहटें,खुशी ,झांव- झाँव कभी जिंदगी।।
जिंदगी है फलसफा पढ़ सकें न हम जिसे।
वक्त की भंवर फंसी ज्यों नाव कभी जिंदगी।।
है तिमिर,उजास,सुबह,शाम, रौशनी सी ये।
बादलों सी आवाजाही,नंदगाँव कभी जिंदगी।।
चांद की ज्योत्सना, सूर्य सी प्रभामयी प्रतिज्ञ।
आनबान,शान,मान देश ,सरपांँव कभी जिंदगी।।
आपसी मेलजोल सहिष्णु,मानवीय मूल्य ये।
सुक्ख-दुक्ख,सहाय, सद्भाव कभी जिंदगी।।
सर्द,गर्म,बहार ऋतु,बसंत, बारिशी ‘मीरा’।
उतार है,चढ़ाव है,लगी दाँव कभी जिंदगी।।