धूँए की आँच से
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दम सा घुटने लगा धूँए की आँच से
सिर चकराने लगा धूँए की आँच से
नाक,आँख,कान से आने लगा पानी
मन घबराने लगा धूँए की आँच से
आँखों से अदृश्य हुआ दृष्टिगोचर
तम सा छाने लगा धूँए की आँच से
धूम के गुब्बार से नभ काला हो रहा
गुंबज बनने लगा धूँए की आँच से
आमजन के मन में भी है धुंआ भरा
हृदय जलने लगा धूँए की आँच से
ईर्ष्या की आग में है तन मन तप रहे
दिल भी सड़ने लगा धूँए की आँच से
छोटा हो या बड़ा क्रोध में भभक रहे
बदन कांपने लगा धूँए की आँच से
सुखविंद्र हिमपात से धुआं मलीन हो
अत्रिज छिपने लगा धूँए की आँच से
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)