धुआँ
जब सड़क भी लगे
आग उगलने
भला फिर ये बेपरवाह मौसम
कहाँ जाए
ख़्वाहिश बाँधे है ये धुआँ
मौसम बने
आसमाँ में घुल जाए
ओढ़ ले इमारतों को
हर ज़र्रे पर हक़ जमाए
जिस क़दर अब्र बन
पूरे शहर पर छाया है
ये नफ़रतों का धुआँ
कहीं से तो कोई
रोशनी की झलक आए
इंतज़ार है हर मंज़र को
एक शख़्स का
कहीं से आए
लाए आँधियों का सैलाब
धुएँ को संग बहा ले जाए
@संदीप