धुंधला शहर
धूल धुंध से धुधला शहर हो गया
मानव की गंदगी से हवा मे जहर हो गया
पता ही नही चला कब सुबह हुई
रात सा अंधेरे है जाने कब दोपहर हो गया
खुली हवा मे सांस दूभर हो रहा
प्रकृति को नष्ट्र किया मानव का कहर हो गया
विकास इसको ही कहते है क्या
खुद का बनाया विनाशकारी लहर हो गया
विन्ध्यप्रकाश मिश्र