धीरे-धीरे क्यों बढ़ जाती हैं अपनों से दूरी
धीरे-धीरे क्यों बढ़ जाती हैं अपनों से दूरी
किस चक्कर में फंसे हुए हम क्या है ये मजबूरी !
जिनकी उंगली पकड़ कर हमने था चलना सीखा
उनके ही अब साथ में चलना क्यों लगता है फीका !
जिसने पौधे सींच-सींच कर खिलता चमन बनाया
खिलते हुए गुलाबों को हर काँटों से बचाया !
बदल रहे मौसम में देखो बदल गया है माली
जिसने पौधे बड़ा बनाया उसकी झोली खाली !
समय चक्र की जालें देखो वापस फिर आयेंगी
जो है उनका आज वो कल हमको भी दिखलायेंगी !
मन के द्वार को खोल के देखो हो तुम कितनी अधूरी
सर पर अपने बड़ों का साया होता कितना जरूरी