धार में सम्माहित हूं
मैं भी धार की दिशा में चल पड़ा हूं
पता नहीं ! ये किधर लेके जा रही है
बिना ठिकाना जाने ही जा रहा हूं
परिणाम अंजाम जानते हुए भी मैं
मझधार की ओर बढ़ता जा रहा हूं
पता है इस दरिया में डूबना ही है
फिर भी डूबने का मजा लेने जा रहा हूं….
मैंने गैरों से ही सुना, गैरों से ही जाना है
बिन ठिकाना जाने, जाना उचित नहीं है
मैं उचित – अनुचित का भेद जानता हूं
सब कुछ जानते हुए भी अनजान सा हूं
दरिया में डूबना अनुकूल सा, क्यों लगता है
कितने हस्तियों की कश्ती डूब चुकी है
चित्त में वही हर्ष है वहीं विषाद है , फिर भी
मैं बिन ठिकाना वाला, अनजान सा पंछी हूं…