“ धार्मिक असहिष्णुता ”
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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क्या लिखूँ क्या सुनाऊँ,
सभी की आँखें बन्द हैं !
कानों के परदे हैं कहाँ ,
सुनने को सब तंग हैं !!
भूल गए हम वो दिन ,
खुशियाँ साथ मानते थे !
होली, दशहरा, मुहर्रम,
ताज़िया संग उठाते थे !!
आपस में था प्रेम सदा ,
ईदी सब से लेते थे !
पंडित, मौलवी, पादरी ,
हमें शिक्षा मंत्र देते थे !!
साथ -साथ मिलकर हम,
आपस में सब रहते थे !
अपनों के दुख -सुख में ,
कदम मिलाकर चलते थे !!
अब न रहा प्रेम हमरा ,
भाईचारा रह ना सका !
घृणा का हुआ पदार्पण ,
राजनीति रुक ना सका !!
विश्व के पटल पर हम ,
सब बौने बनते चले गए !
छवि तो धूमिल हो गयी ,
हम अकेले सबसे हो गए !!
होली ,रामनवमी, मुहर्रम ,
में सिर्फ तनाव बड़ता है !
सौहार्द का इस पर्व में ,
मौत का तांडव होता है !!
हम भूल जाते हैं सभी ,
बन जाते हम अनेक हैं !!
शक्तिशाली तभी बनेंगे ,
जब सदा हम एक हैं !!
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखण्ड
भारत
01.04.2023