धाराओं में वक़्त की, वक़्त भी बहता जाएगा।
धाराओं में वक़्त की, वक़्त भी बहता जाएगा,
ये आज हीं बीता कल और, आने वाला कल कहलायेगा।
जीवन की इस यात्रा में जो तू, नदी सी सौम्यता अपनाएगा,
पत्थरों से भरी घाटियों को भी, तू सुगमता से पार कर पायेगा।
ना बन सका जो अंधेरों का सूरज, पर दीपक जो जलाएगा,
कितने हीं घरों का अँधेरा, तेरी रौशनी से मिटता जाएगा।
घने बादलों का आवागमन, व्यक्तित्व की ढृढ़ता लाएगा,
जो लड़ेगा तूफानों से, तो इंद्रधनुषी आसमां तुझे अपनाएगा।
सफर में कश्ती के, वो साहिल छूटना तुझे समझायेगा,
ऐसे हीं तो समंदर को पार कर, तू नयी मंजिलें छू पायेगा।
जो इनायतें होंगी ठोकरों की, तू आज गिर तो जाएगा,
और गिरकर हर बार उठना, ये रस्ता तुझे सिखाएगा।
वो टूटता तारा, क्षितिज से मिट तो जाएगा,
और अपनी हस्ती की चमक को, दुआओं में बाँट आएगा।
बंद दरवाजों पर ना बैठ, बस वक़्त हीं गंवाएगा,
खुलेंगे द्वार नए आयामों के, जो तू खुद से लड़ दिखायेगा।