धवल घन !
धवल घन ! ले चल नभ के पार
ऐसी प्यास जगा दे कर लूंँ
हर पीड़ा स्वीकार !
सुंदर पनघट पर पनिहारिन
प्यासी ही मर गई अभागिन
और इसी जीने मरने को
कहते हैं संसार !
रेतीला सा मन वर्षा का
टूटा कोई स्वप्न पिता का
कैसे देखें दिन दिन ताकत
होती है लाचार !
-आकाश अगम