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15 Dec 2020 · 7 min read

धर्म योग व विज्ञान विरोधी या परस्पर पूरक

विषय :–धर्म ,योग व विज्ञान विरोधी या परस्पर पूरक ।

सनातन धर्म में कथन है,

“जहां विज्ञान की सीमा अंत होती है,वहीं से अध्यात्म आरंभ होता है ।”
धर्म पर विश्वास करना है ,तो ,उसे विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरना अति आवश्यक है।तत्पश्चात धर्म और योग सिद्धांततः स्वीकार होते हैं। अन्यथा परिकल्पना मात्र होते हैं। अतः विज्ञान, योग ,और धर्म एक दूसरे के विरोधी ना होकर परस्पर पूरक होते हैं। जिससे वे मानव जाति की उन्नति में सहायक होते हैं ।समाज के आर्थिक, राजनैतिक एवं वैज्ञानिक व आध्यात्मिक विकास में सहायक सिद्ध होते हैं,और मानव के मानसिक, शारीरिक , आध्यात्मिक स्वास्थ में धर्म ,योग एवं विज्ञान का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यह सृजनात्मक शक्ति मनुष्य को अपने सामर्थ्य का अहसास कराती है।

योग ,धर्म और विज्ञान एक दूसरे के पूरक हैं, इस संबंध में मानसिक विकारों के निदान में उपरोक्त का अद्भुत योगदान है। उदाहरण स्वरूप मुझे अवसाद से संबंधित कुछ तथ्य प्रस्तुत करना चाहिए। अवसाद एक मानसिक अवस्था है,। यह एक शारीरिक व्याधि नहीं है । इस संदर्भ में अवसाद से संबंधित कुछ प्रमुख लक्षण प्रस्तुत करता हूं।
(1) दुख एवं निराशा लंबे समय तक बनी रहना।

(2)स्वयं को ना काबिल समझना।

(3)चिड़चिड़ापन ।

(4)शंकालु स्वभाव बन जाना।

(5) शारीरिक थकान महसूस करना।

(6) खुद को कसूरवार समझना।

(7)बार-बार रोने की आदत पड़ जाना ।

(8)उदासीनता। ऐसे व्यक्ति किसी चीज को इंजॉय नहीं कर पाते, उन्हें पसंदीदा फिल्में देखना, मनपसंद खेल खेलना ,घूमना। यहां तक कि सेक्स करना भी अच्छा नहीं लगता।

(9)बेवजह बेचैन रहना।

( 10)एकाग्रता की कमी रहना।

(11) खुद को लोगों से अलग कर लेना।

(12)अनिद्रा की समस्या और कभी-कभी बहुत अधिक सोना।

( 13) शरीर में दर्द (सिर दर्द पेट दर्द,ऐंठन)।

(14) आत्महत्या करने का विचार आना।

(15)पाचन क्रिया संबंधित समस्याएं उत्पन्न हो जाना ।

(16)बात-बात में नाराज हो जाना ।

(17)हाथ पैर में कंपन ।बोलते समय जुबान लड़खड़ाना।

अत्यधिक पसीना आना,

( 18)शरीर के वजन में कमी आना अथवा वजन काफी बढ़ जाना।
इस तरह के नकारात्मक भाव दो सप्ताह से अधिक रहे तो उसे अवसाद ग्रस्त कहा जा सकता है। अवसाद ग्रस्त व्यक्ति की पहचान हम उसका इतिहास जानकर करते हैं ।
“अवसाद ग्रस्त व्यक्ति की पहचान”

जैसे, सामाजिक दूरी बनाना ,एकांत प्रिय होना ।उन्हें अंधेरे कमरे में रहना अच्छा लगता है।
अनिद्रा और डरावने सपने देखना।
स्वयं को हानि पहुंचाने वाला व्यवहार, जैसे तेज वाहन चलाना।
सुरक्षा के प्रति लापरवाही करना

आत्म हत्या की प्रवृत्ति ।

सेक्स के प्रति अरुचि,

पेट संबंधी बीमारियों की अधिकता ।

मन में नकारात्मक विचार आना

आत्मआलोचना की प्रवृति।

“अवसाद के प्रकार ”

अवसाद संबंधी विकार, मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं।

(1)मेजर डिप्रेसिव डिसऑर्डर :-
इसमें कार्य करने ,सोने ,अध्ययन करने ,खाने और सामान्य अनुभव की क्षमता बाधित या कम हो जाती है।
(2) उपचार प्रतिरोधी अवसाद (ट्रीटमेंट रिसिस्टेंट डिप्रेशन )- यह अवसाद स्थाई या पुराना होता है इसमें अवसाद निवारक दवाएं काम नहीं करती। ऐसे में प्रायः इलेक्ट्रोकंवल्सिव थेरेपी( आईसीटी )का प्रयोग किया जाता है ।
स्थाई अवसाद विकार( क्रॉनिक डिप्रेसिव डिसऑर्डर )–यह लक्षण कम से कम 2 साल तक रहता है।

” अवसाद के कारण ”

अनुवांशिक कारण —

अवसाद ग्रस्त माता-पिता की संताने भावनात्मक रूप से अधिक असंतुलित होती हैं।इनमे अवसाद की संभावना 30 से 40% अधिक होती है।

दीर्घकालिक तनाव—

किसी परिजन की मृत्यु, प्रेम में निराशा, दुर्घटना, व्यवसाय में हानि ,परीक्षा में असफलता नौकरी ना लगना, शादी ना होना/ तलाक हो जाना आदि ऐसे कारण होते हैं ।

भौतिक कारण-

कुपोषण, खराब परवरिश, अप्रिय एवं अभावग्रस्त परिस्थितियों में अधिक समय तक रहना। शरीर का रोग ग्रस्त रहना, ऐसे भौतिक कारण है ,जो अवसाद को जन्म देते हैं।

संकुचित दृष्टिकोण —

अध्यात्म के अनुसार अवसाद का कारण आसक्ति है ।व्यक्ति अपने शरीर, मन तथा अपने प्रिय वस्तु तक ही अपनी दुनिया मान लेता है। संकुचित चेतना के कारण लोग उसे पराये नजर आते हैं। उसमें तामसिक गुणों का बाहुल्य हो जाता है। आगे चलकर वे अवसाद ग्रस्त हो जाते हैं।

सामाजिक समस्याएं —

जीवन में विपरीत बदलाव, आयु जैसे , वृद्धावस्था लिंग जैसे महिलाओं में मासिक धर्म, गर्भधारण एवं मीनोपॉज के समय हार्मोन में परिवर्तन, पारिवारिक समस्याएं ,बीमार परिजन से निकटता, सामाजिक एवं आर्थिक असहज स्थिति, अतीत में कोई हादसा या दुर्व्यवहार, विशेषतःशिशु अवस्था में दमनात्मक एवं उपेक्षित व्यवहार। भेदभाव अलगाव ,रिश्ते टूटना एवं रिश्ते निभाने में कठिनाई, परिवार के किसी सदस्य का व्यसनी हो जाना, पति पत्नी के खराब संबंध आदि ऐसे सामाजिक एवं परिवारिक कारण है जो अवसाद को जन्म देते हैं ।

मनोवैज्ञानिक कारण —

कम सामाजिक प्रतिष्ठा, व्यक्तित्व के विकार, तनाव का अत्यधिक दबाव, शारीरिक व मानसिक अपंगता ,हीन ग्रंथि ,अपराध बोध, दूषित चिंतन ,आदि मनोवैज्ञानिक कारण भी अवसाद के लिए उत्तरदायी हैं।

भावात्मक कारण–

निराशाजनक एवं नकारात्मक चिंतन ,आत्मविश्वास एवं इच्छाशक्ति में कमी ।अति कल्पनाशीलता ।

शारीरिक रोग एवं अंत स्रावी ग्रंथियों का व्यतिक्रम —

थायराइड आदि अंत स्रावी ग्रंथियों के कम/ज्यादा स्त्राव से भी अवसाद ग्रस्त हो जाते हैं ।

चिंता एवं बेचैनी —

चिंता -बेचैनी का अवसाद से चोली दामन का साथ है। हम सभी अपने जीवन में चिंता एवं बेचैनी का अनुभव करते ही हैं कुछ लोग अकारण ही किसी ना किसी बात को लेकर चिंता और बेचैनी में पड़ जाते हैं।

“अवसाद दूर करने के उपाय”

अवसाद दूर करने में योग, धर्म और चिकित्सा विज्ञान की सहायता ली जानी चाहिए ।क्योंकि यह एक दूसरे के पूरक हैं। इस तथ्य को मैं निम्न प्रमाणों द्वारा प्रमाणित कर सकता हूं।

योगाभ्यास करें -योगाभ्यास से अवसाद समाप्त होता है ।अवसाद के रोगी को योगाभ्यास निरंतर करते रहना चाहिये।इससे भविष्य में अवसाद नहीं होगा। डिप्रेशन के रोगी के लिये शशाँकासन,भस्त्रिका और भ्रामरी प्राणायाम उपयोगी है ।ध्यान लगाने से मस्तिष्क के स्नायु तंत्र के ताने-बाने में एक महीने में सुधार आ सकता है ।प्राणायाम हर उम्र के अवसाद रोगी के लिए उपयोगी है ।योगाभ्यास प्राणायाम एवं ध्यान तीनों के लिए उचित समय दें ।

“उचित जीवनशैली अपनाऐँ”–

जीवन शैली में बदलाव लाकर ही अवसाद से बचा जा सकता है। उचित एवं सुव्यवस्थित जीवनशैली से संबंधित निम्नलिखित बातों पर ध्यान देकर हम अवसाद से छुटकारा पा सकते हैं ।
अवसाद को सही अर्थों में जानने समझने का प्रयास करें।
प्रामाणिक जानकारियां एकत्रित करें।

स्वाध्याय करें ।भगवत गीता अवश्य पढ़ें। गीता का सारा उपदेश अवसाद निवारण के निमित्त ही है ।

जी खोलकर हंसने की आदत डालें ।जी खोलकर हंसने से कुण्ठायें धराशाई हो जाती है। ठहाके लगाकर हंसने से ना केवल फीलगुड हार्मोन ऐंडार्फिन का रिसाव होता है ।वरन स्ट्रेस हार्मोन में भी कमी आती है। जिससे डिप्रेशन को दूर करने में सहायता मिलती है ।ठहाके लगाकर हंसने में शरीर के अनेक मांसपेशियों की कसरत भी हो जाती है।

पालतू जानवरों के साथ समय बिताएं ।

पशुओं के प्रति प्रेम भी आपको डिप्रेशन से उबारने में सहायक होता है ।

प्राकृतिक दृश्यों का आनंद उठाएं। अगर आपके पास कोई बाग बगीचा हो या फिर हरा भरा खेत ही क्यों ना हो उसमें जरूर जाएं।

आउटडोर गेम्स में हिस्सा लें। अपनी मनपसंद का कोई खेल जैसे बैडमिंटन, टेबल टेनिस, फुटबॉल ,वॉलीबॉल आदि अवश्य खेलें।

नशा मुक्त जीवन जिएं।यदि आप किसी प्रकार का नशा जैसे सिगरेट, शराब ,भांग ,गांजा आदि का सेवन करते हैं तो उसे अति शीघ्र ही त्याग दें।

अपने प्रेम को अभिव्यक्त करें। मधुर कल्पनाएं करें ।ठीक वैसी ही जैसी बचपन में किया करते थे। किंतु अति कल्पनाशीलता से बचें ,क्योंकि यह आपके मस्तिष्क को बोझिल और तनावग्रस्त कर सकती है ।

हमेशा व्यस्त रहें ,खाली दिमाग शैतान का घर होता है ,किंतु दिमाग को उलझाने वाले काम ना करें ।आप फोटोग्राफी कर सकते हैं। साहित्य, संगीत ,कला और चित्रकला के प्रति अपनी रुचि जागृत कीजिए। कुछ नया करें, ताकि मन बदले।

चिकित्सा एवं काउंसलिंग:–

दूसरी बीमारियों की ही तरह अवसाद का भी सफल इलाज किया जा सकता है।एलोपैथी, होम्योपैथ, एवं आयुर्वेद में अवसाद की कुछ दवाइयां/ उपाय इस प्रकार है।

एलोपैथ– एंटी डिप्रेसेंट दवाइयां जैसे- फ्लूओक्सिटिन,सेट्रेलिन,सिटालोप्राम,फ्लूवोक्सेमिन आदि।”काउंसलिंग” भी कारगर सिद्ध होती है।

होम्योपैथ —ओरममेट, आर्स.एल्ब, ऐनाकार्डियम ,काली फॉस ,कास्टिकम आदि ।

आयुर्वेद — अश्वगंधा, ब्राह्मी, जटामांसी ,जिनसेंग आदि।

रोगी को प्रेरणा एवं सहायता प्रदान करें ।

डिप्रेशन केवल मन की एक अवस्था नहीं है जो मात्र सकारात्मक सोच से ठीक हो जाए। डिप्रेशन एक मानसिक समस्या अथवा डिसऑर्डर है, जिसमें मस्तिष्क में रासायनिक परिवर्तन हो जाते हैं ।अतः मनोचिकित्सा के साथ साथ रोगी को मित्रों /पारिवारिक सदस्यों की सहायता की भी जरूरत होती है। अतः उन्हें चाहिए कि

वे रोगी को अकेला ना छोड़ें, रोगी को धैर्य प्रोत्साहन एवंभावनात्मक सहारा दे ।

उसकी रुचिओं को प्रोत्साहित करें, उसमें आत्मविश्वास जगाए। उसके साथ खेलकूद, घूमने फिरने, खाने-पीने ,संगीत वाद्य, सिनेमा आदि देखने ,हंसी मजाक करने में सहभागिता निभाएं।

संतोष एवं धैर्य को अपनाएं। परमात्मा ने जितना दिया है उसी में संतोष करें ।संतोष व्यक्ति का सबसे बड़ा सुख है ।मन में ईर्ष्या द्वेश को ना आने दें। मन को निर्मल व शांत रखें। धैर्य एवं सहनशीलता अवसाद को दूर करने में सहायक सिद्ध होते हैं।

संतुलित पौष्टिक सभी पोषक तत्वों से युक्त सुपाच्य एवं सात्विक भोजन लें ।

सुख-दुख को मित्रों, परिवारिक सदस्यों एवं सहयोगियों में बांटे।

नित्य प्रातः पैदल भ्रमण एवं व्यायाम करें ।

ईश्वर पर विश्वास करें पूजा पाठ करें आध्यात्मिक जीवन जियें।

उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट होता है ,कि मनोविज्ञान अवसाद दूर करने में अत्यंत सहायक होता है। धार्मिक ग्रंथों का प्रभाव हमारी जीवन शैली पर स्पष्ट रूप से पड़ता है ,और अवसाद दूर करने में सहायक सिद्ध होता है। योगाभ्यास द्वारा मानसिक रूप से रोगी सशक्त होते हैं, एवं स्नायु तंत्र शक्तिशाली होते हैं ।इस प्रकार अवसाद दूर करने में योगाभ्यास एक महत्वपूर्ण उपाय है।.

डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव,” प्रेम”
वरिष्ठ परामर्श दाता, प्रभारी रक्तकोष।
जिला चिकित्सालय, सीतापुर उ.प्र.

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Comments · 322 Views
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