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22 May 2023 · 1 min read

धर्म की राजनीती

धर्म का कांटा किसको तोले,
जो भी बोले नफरत घोले ।
सब बन बैठे उसके ठेकेदार,
उससे नहीं किसी को प्यार ।

वर्चस्व का ये खेल पुराना,
खून खराबे का है ये घराना ।
मिटटी पत्थर के लिए लड़ाई,
फिर देखी क्या किसने खुदाई ।

प्यार के पाठ पढ़ने वाले,
छलकते नफरत के प्याले ।
भले मानस सब इसमें पिसते,
देख तमाशा बाकी हँसते ।

नेता नगरी वोट बटोरें,
देके तसल्ली सुबह सवेरे ।
ये नफरत न मिटने वाली,
धर्म के नाम पे देकर गली ।

इसका नहीं हैं कोई समाधान,
इंसान एक पर कई भगवान ।
तो लड़ो लड़ाई अपनी अपनी,
फिर जैसी करनी वैसी भरनी ।

Language: Hindi
Tag: Kavita
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