धर्म का उद्देश्य
कुशल कर्मो की मन में धारणा ही धर्म होता है।
धर्म रसपान से बढ़कर ,न कोई कर्म होता है।।
शील अष्टांग का पालन,मिटा देता है तृष्णा को,
मिटे दुख चक्र जीवन का,ये जीवन मर्म होता है।।
कुशल कर्मो की मन में धारणा ही धर्म होता है।
धर्म रसपान से बढ़कर ,न कोई कर्म होता है।।
शील अष्टांग का पालन,मिटा देता है तृष्णा को,
मिटे दुख चक्र जीवन का,ये जीवन मर्म होता है।।