धर्म और विज्ञान एक दूसरे के पूरक
आदरणीय मित्रों आज की धर्म चर्चा में विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय के विषय में विचार विमर्श चल रहा है ।एक समय था, जब हम सब मानते थे, कि जहां पर विज्ञान की सीमा का अंत होता है ,वहीं से आध्यात्म की सीमा प्रारंभ होती है। किंतु, समय के साथ यह धारणा परिवर्तित होती गयी। आज विज्ञान और अध्यात्म एक दूसरे के पूरक बन गए हैं। विशेष तौर पर चिकित्सा शास्त्र में , मानसिक चिकित्सा द्वारा मानसिक स्वास्थ्य लाभ इसका प्रमाण है। इस संदर्भ में, मानसिक स्वास्थ्य की पुष्टि विज्ञान के द्वारा की जाती है। विज्ञान के मानदंड अध्यात्म की कसौटी पर खरे उतरते हैं। तभी उन्हें सिद्धांत की मान्यता दी जाती है ।अध्यात्म विज्ञान के बिना मात्र परिकल्पना रह जाता है, किंतु जब विज्ञान का समावेश होता है ,विज्ञान के द्वारा पुष्ट आध्यात्म, सिद्धांत बन जाता है ।मानसिक रोगों में अध्यात्म मानसिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक है ,क्योंकि ,यह व्यक्ति को सकारात्मक विचारों के द्वारा आप केंद्रित करता है, एवं उसके आत्मविश्वास में वृद्धि करता है। मानसिक तनाव एवं चिंता से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है। इसी प्रकार योग शक्ति के द्वारा जब हम मधुमेह और उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करते हैं तब उसका परीक्षण चिकित्सा शास्त्र और विकृति विज्ञान से ही करते हैं। और उसकी पुष्टि करते हैं कि हमारा प्रयास सफल है या नहीं। इसी प्रकार गायत्री मंत्र का उच्चारण करके स्मरण शक्ति में वृद्धि की जा सकती है। जिसका अनुभव व्यक्ति स्वयं एवं चिकित्सक के द्वारा किया जा सकता है ।इसी प्रकार ॐ शब्द के उच्चारण के द्वारा शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है । महामृत्युंजय जप से व्यक्ति नैसर्गिक मृत्यु की ओर बढ़ता है और अल्प मृत्यु की संभावना कम हो जाती है। क्योंकि यह विज्ञान द्वारा भी प्रमाणित किया जा चुका है ।इसी प्रकार संगीत का अध्यात्म में योगदान है ।संगीत के द्वारा भी रोगों की चिकित्सा की जाती है जो कि प्रमाण है कि आध्यात्मिक विज्ञान का पूरक है,ना कि प्रतिद्वंदी। साधुवाद
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, “प्रेम”