धर्मेंद्र अरोड़ा मुसाफ़िर की ग़ज़लें
1
अजब मामला
बड़ा ही अजब मामला हो गया!
अचानक था जब सामना हो गया!!
छिपाते रहे हाल दिल का मगर!
ग़मे ज़िंदगी आईना हो गया!!
हमेशा निभाता वफ़ा का चलन!
बशर वो कहाँ बेवफ़ा हो गया!!
कुरबतें बन गयी हैं सभी दूरियाँ!
हठीला जुदा फ़ासला हो गया!!
बुलाया जिसे प्यार से मुस्कुरा!
मुसाफ़िर वही आपका हो गया!!
धर्मेंद्र अरोड़ा”मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र:9034376051
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2 जहां की रीत
इस जहां की यही रीत है !
हौसलों से मिले जीत है!!
गुनगुनाओ अगर प्यार से !
ज़िंदगी इक मधुर गीत है!!
आदमी मुतमइन वो रहे !!
नेकियों से जिसे प्रीत है !
पाक मन को रखे जो बशर !
डोलती फिर नहीं नीत है !!
बात पूछे मुसाफ़िर सदा !
कौन किसका यहाँ मीत है !!
धर्मेंद्र अरोड़ा”मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र:9034376051
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3
दिलकश नज़ारा
नज़ारा लाख दिलकश हो मगर अच्छा नहीं लगता!
रखे जो दूर छाया को शज़र अच्छा नहीं लगता!!
खुशी सारे ज़माने की भले मौजूद हो लेकिन!
भरा ग़म है अगर दिल में बशर अच्छा नहीं लगता!!
रहे अभिमान में अकड़ा हमेशा जो ज़माने में!
सिवा अपने कोई भी नामवर अच्छा नहीं लगता!!
सियासत के दरिंदो की यही पहचान है होती!
बिना वोटों के कोई भी नगर अच्छा नहीं लगता!!
सदा आसान हों राहें नहीं मुमकिन यहाँ हरगिज़!
गिले हों ज़िन्दगानी से सफर अच्छा नहीं लगता!!
ज़माने को अगर देखो मुसाफ़िर की नज़र से तुम!
इरादों के बिना जीवन समर अच्छा नहीं लगता!!
धर्मेंद्र अरोड़ा”मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र:9034376051
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4
चाॅंद
चाँद निकला किसे देखने के लिए!
हो रही साज़िशें रोकने के लिये!!
गुफ़्तगू कर रहे हैं सितारे सभी!
रोशनी कम पड़ी भेजने के लिये!!
ज़िंदगी में यही बात सोचो ज़रा!
ता-उमर ये कहाँ सोचने के लिये!!
खूं-पसीने से घर को बनाया मगर!
आज मजबूर पर बेचने के लिये!!
बात कहता पते की मुसाफ़िर सुनो!
प्यार होता नहीं थोपने के लिये!!
धर्मेंद्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र: 9034376051
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5
आंधियों की धुन
आंधियों की धुन पे’ गाती ज़िंदगी!
दीप हिम्मत का जलाती ज़िदगी!!
वक्त की सरगोशियों के साज़ पर!
दिलनशीं नग़मे सुनाती जिंदगी!!
चूम लेता गर बुलंदी है बशर!
खिलखिलाकर मुस्कुराती ज़िंदगी!!
गरदिशों के काफ़िले को रौंदकर!
खुशनुमा मंज़र दिखाती ज़िंदगी!!
खेल बच्चों की तरह खेले सदा!
रूठती फ़िर मान जाती ज़िंदगी!!
आज को जीना मुसाफ़िर शान से!
बस यही पैग़ाम लाती ज़िंदगी!!
धर्मेंद्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र: 9034376051
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6
“वफ़ा का चलन”
च़रागे-मुहब्बत बुझाना नहीं।
हमें याद रखना भुलाना नहीं!!
अगर या मगर से किनारा करो!
बहाने कभी तुम बनाना नहीं!!
भले घूम लेना ज़माने में’ तुम!
कहीं माँ से’ बढ़कर खज़ाना नहीं!!
ग़मे ज़िंदगी है कड़ा इम्तिहां!
चले आंधियाँ डगमगाना नहीं!!
वफ़ा का चलन जो निभाए सदा!
“मुसाफ़िर” उसे आज़माना नहीं!!
धर्मेंद्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र:9034376051~
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7
हर खुशी मांग ली
हर खुशी मांग ली दोस्तों के लिये!
खै़र-मक़दम किया दुश्मनों के लिये!!
प्यार से ही सभी क़ाम बनते यहाँ!
ज़िंदगी ये कहाँ नफ़रतों के लिये!!
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रोज़ धरने करें कौम के नाम पर!
ये मुनासिब लगे शातिरों के लिये!!
जल रहे हैं दिये आस के अब तलक!
कोई चारा कहाँ आँधियों के लिये!!
क़ुरबतें बन गई दूरियाँ अब सभी!
बंद रस्ते हुए फ़ासलों के लिये!!
एक तरफ़ा करें फ़ैसला केस का!
ग़ैर -मुमक़िन लगे मुंसिफ़ों के लिये!!
चंद लफ्जों में’ सारा समां बांध दो!
ये मुसाफ़िर कहे शायरों के लिये!!
धर्मेंद्र अरोड़ा”मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र:9034376051
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8
ज़िंदगानी सजाते चलो
पत्थरों को हटाते चलो!
ज़िंदगानी सजाते चलो!!
देश में जो मिरे छा रही!
वो गरीबी मिटाते चलो!!
तीरगी खल रही ग़र तुम्हें!
दीप मन के जलाते चलो!!
बिन रुके ही चलाना कलम!
धार इसमें लगाते चलो!!
तल्ख़ लहज़ा मुसलसल यहाँ !
शायराना बनाते चलो !!
बज़्म में तुम मुसाफ़िर सदा!
गीत -ग़जलें सुनाते चलो!!
धर्मेंद्र अरोड़ा”मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र:9034376051
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9
जाॅं भी तुम्हारी
ये जाँ भी तुम्हारी ये दिल भी तुम्हारा !
नज़र ने किया है नज़र को इशारा!!
लगा रात दिन जो इसी की लगन में !
क़लम ने उसे ही जहाँ में निखारा !!
बड़ी ही निराली इनायत खुदा की !
हमें है मिला खूबसूरत नज़ारा !!
समय का चलन तो बड़ा ही गज़ब है !
सभी से ये’ जीता किसी से न हारा !!
हमेशा करे जो नुमाया हकीकत !
उसी आइने में है’ खुद को सँवारा !!
मुसाफ़िर करे ये गुज़ारिश सभी से !
वतन में रखो तुम सदा भाईचारा !!
धर्मेंद्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र:9034376051
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10
उल्फ़त
उल्फ़त से इन्कार न करना!
नफ़रत का इज़हार न करना!!
मन का गुलशन खार न करना!
भूले से तकरार न करना!!
मिलजुल कर ही रहना सारे!
रिश्तों को अख़बार न करना!!
ग़ैरों की चाहत में पड़कर!
खुद को तुम बीमार न करना!!
झूठे संतों के चक्कर में!
जीवन ये बेकार न करना!!
हरदम रहना हद में अपनी!
मर्यादा को पार न करना!!
दुनिया में हर शै है फ़ानी!
इससे हरगिज़ प्यार न करना!!
सफल बनेगा सारा जीवन!
मैला बस किरदार न करना!!
धर्मेंद्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र:9034376051
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11
जबान
ज़बान का जो खरा नहीं है!
यक़ीन उसपे ज़रा नहीं है!!
लगे असंभव उसे हराना!
जो आंधियों से डरा नहीं है!!
समझ सके ना किसी की पीड़ा!
के’ ज़ख्म जिनका हरा नहीं है!!
लहू हमारा लो’ पी रहा वो!
गुनाह से दिल भरा नहीं है!!
रहे मुसाफ़िर सदा शिखर पे!
ज़मीर जिसका मरा नहीं है!!
धर्मेंद्र अरोड़ा”मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र:9034376051
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12
“दर्द से दिल्लगी”
इक ख़ता अनकही आप कर लीजिए !
दर्द से दिल्लगी आप कर लीजिए !!
ज़िंदगी का कभी मत भरोसा करो !
नेकियाँ कुछ नयी आप कर लीजिए !!
फूल मिलते नहीं हैं अगरचे तुम्हें !
ख़ार से दोस्ती आप कर लीजिए !!
सुरमयी शब्द के मर्म को जानिए!
फिर हसीं शायरी आप कर लीजिए !!
चैन होगा मयस्सर यकीनन तुम्हें !
दो घड़ी बंदगी आप कर लीजिए !!
प्यार की बूँद को जो तरसते सदा !
बात उनसे ज़रा आप कर लीजिए !!
अब मुसाफ़िर समां दिलनशीं है मिला!
क़ैद में हर ख़ुशी आप कर लीजिए!!
धर्मेंद्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र:9034376051
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13
शीर्षक”बंदगी”
हर तरफ़ जब बंदगी होने लगी!
ज़िंदगानी में खुशी होने लगी!!
इस जगत में सब मयस्सर है मगर!
आदमी की बस कमी होने लगी!!
खौफ़ दिल का उड़ गया जाने कहां!
मौत से जब दिल्लगी होने लगी!!
जिसको छोटा थे रहे हम मानते!
बात देखो वह बड़ी होने लगी!!
देख कर गंदी सियासत आज-कल!
अब मुसाफ़िर बेकली होने लगी!!
धर्मेंद्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र:9034376051
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14
शीर्षक*हिंदी*
विद्या: गीतिका
मापनी:1222 1222 1222 1222
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बड़ी मीठी लगे सबको हमारी शान है हिंदी !
अनेकों गुण भरे इसमें गुणों की खान है हिंदी !!
मधुर धारा बहा देती अगर तुम भीगना चाहो !
बजाये सुरमयी सरगम सुरीली तान है हिंदी !!
सभी का दिल लुभा लेती दया सद्भाव से अपने !
निराली हर अदा इसकी सभी की जान है हिंदी !!
महकती फूल सी हरदम चहकती बन सदा बुलबुल !
समर्पित भावनाओं का सुवासित गान है हिंदी !!
यही अनुरोध करता हूँ लिखो मनभावनी भाषा !
रहो इसकी शरण में सब बढ़ाती मान है हिंदी !!
धर्मेंद्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र:9034376051
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15
दिलनशीं आसमाॅं
दिलनशीं इस आसमाँ की बात कर!
चाँद, तारों, कहकशाँ की बात कर!!
मशवरा तुझको दिया किसने भला!
आतिशी दौरे-जहाँ की बात कर!!
तीरगी ग़र पल रही दिल में तेरे!
रोशनी हो बस वहाँ की बात कर!!
मज़हबी रंजिश तू रखना छोड़ दे!
मुल्क ये तेरा यहाँ की बात कर!!
पल जुदाई में ख़ुदा की जो कटे!
सब्र की उस इन्तहाँ की बात कर!!
बात करनी है तुझे मुझसे अगर!
शायराना दास्ताँ की बात कर!!
फूल जिसमें हों मुसाफ़िर प्यार के!
उस चमन में मत खिजाँ की बात कर!!
धर्मेंद्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र:9034376051
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16
आस का दीपक
मुश्किलों के दौर में भी मुस्कुराना चाहिये!
आस का दीपक नहीं हमको बुझाना चाहिये!!
ज़िंदगी के खेल में हो जंग रिश्तों से अगर!
छोड़ कर अभिमान झूठा हार जाना चाहिये!!
कौन जाने कब तलक तुमको मिली सांसे यहाँ!
भूल सब संजीदगी हँसना हँसाना चाहिये!!
हौंसला शाहीन सा तुम इस ज़माने में रखो!
बादलों से तुमको ऊँचा उड़ दिखाना चाहिये!!
साथ हैं तेरे मुसाफ़िर ये ज़मीनो-आसमां!
बेधड़क आगे ही आगे पग बढ़ाना चाहिये!!
धर्मेंद्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र:9034376051
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17.
ग़म का दरिया
ग़म का दरिया पार करना सीखिए !
मुश्किलों के पर कतरना सीखिए !!
वक़्त की सरगोशियाँ ये कह रही !
अज़्म में अंगार भरना सीखिए !!
हाथ फ़िर मोती लगेंगे ख़ुद- ब- ख़ुद !
बस समंदर में उतरना सीखिए !!
हर तरफ़ खुशबू बिखरती जाएगी !
फूल सा बनकर निखरना सीखिए!!
रंजो ग़म सारे जहाँ के छोड़ कर !
इक खुशी में ही विचरना सीखिए !!
कह रहा है जो मुसाफ़िर सब सुनो !
अब कलम से ही सँवरना सीखिए!!
धर्मेंद्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र:9034376051
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18
बेबसी
दर्द जाए न बेबसी जाए !
कैसे आँखों से फिर नमी जाए!!
ये ज़रूरी नहीँ जुबां बोले !
बात आँखों से’भी कही जाए !!
आस की लौ भला जले कैसे !
आग दिल की अगर बुझी जाए !!
आरज़ू गर तुम्हें अमीरी की !
गैर- मुमकिन है बेकली जाए !!
रात बीती हुआ उजाला अब !
वक्त की धार यूँ बही जाए !!
इस मुसाफ़िर की’अर्ज़ है इतनी !
अनकही दास्तां सुनी जाए !!
धर्मेंद्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र:9034376051
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19
वफा
हर किसी से वफा कीजिए !
साथ सबके चला कीजिए !!
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ज़िंदगी ग़मज़दा हो गयी !
इक खुशी का पता कीजिए !!
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दिल खिलौना नहीं है मगर !
टूट जाये तो क्या कीजिए !!
अपनी’ कहना ही’ काफ़ी नहीं !
दूसरों की सुना कीजिए !!
कह रहा है समंदर यही !
तिश्नगी को बड़ा कीजिए !!
हो उजाले अगर चाहते !
बनके’ दीपक जला कीजिए !!
मज़हबी तोड़कर बेड़ियाँ !
हर बशर से मिला कीजिए!!
शायरी ये बड़े काम की !
आप दिल से किया कीजिए !!
अब मुसाफ़िर यही कह रहा !
रोज़ सजदा अता कीजिए !!
धर्मेंद्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र:9034376051
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20.
उम्र
गर्दिश में हों अगर सितारे !
कैसे कोई उम्र गुज़ारे !!
मुस्कानों के पीछे छिपकर !
बैठे हैं दो आँसू खारे !!
बिना बुलाए ग़म के मन्ज़र !
आ जाते हैं पास हमारे !!
कभी अमीरी कभी गरीबी !
किस्मत के ही खेल हैं सारे !!
तेरा-मेरा मेरा-तेरा !
हर इंसा है यही पुकारे !!
जब होता है मेल दिलों का !
दिलकश लगते सभी नज़ारे !!
मज़हब की दीवारें तोड़ो !
कहे मुसाफ़िर तुमको प्यारे!!
धर्मेन्द्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र:9034376051
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21.
मुस्कुराने का बहाना
मुस्कुराने का बहाना मिल गया !
दिलनशीं मंज़र सुहाना मिल गया !!
सच कहूँ तो मोज़िज़ा ही हो गया !
आरज़ू को आबोदाना मिल गया !!
ज़िंदगी से हम हुए बेज़ार थे !
इक हसीं हमको तराना मिल गया !!
मेरी भी हर शायरी निखरेगी अब !
मीत हमको शायराना मिल गया !!
दूर दिल के सब भरम होने लगे !
जब हमें रहबर सयाना मिल गया !!
अब मुसाफ़िर खुश हुआ ये सोचकर !
जीत का हमको ठिकाना मिल गया !!
धर्मेंद्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र:9034376051
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22
फाग
फ़ाग का मौसम सुहाना आ गया!
ज़िंदगी के सुर सजाना आ गया!!
भूलकर मंज़र पुराने ग़म भरे!
बस ख़ुशी के गीत गाना आ गया!!
दिल को दिल से जोड़ता है जो बशर!
हाथ उसके तो खज़ाना आ गया!!
बच्चे बूढ़े नारियां भीगे सभी!
एक सा सब का ज़माना आ गया!!
छोड़ दिल की अब मुसाफ़िर बेबसी!
प्रेम के मोती लुटाना आ गया!!
धर्मेंद्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र:9034376051
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23
सुहाना मंज़र
दर्द दिल का अब पुराना हो गया!
ख़ुशनुमा मंज़र सुहाना हो गया!!
आंसुओं को गर हंसी में ढ़ाल दो!
लोग कहते हैं दिवाना हो गया!!
नेकियां जग में कमाई हों अगर!
पास फ़िर समझो खज़ाना हो गया!!
हर घड़ी जो ख़ार बन चुभती रही!
बात वो भूले ज़माना हो गया!!
वक्त की देखी अजब चारागरी!
अब मुसाफ़िर भी सयाना हो गया!!
धर्मेंद्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र: 9034376051
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24
ज़िंदगी का दस्तूर
ज़िंदगी का बस यही दस्तूर है!
हर ख़ुशी होती यहां क़ाफ़ूर है!!
शान में अपनी रहे डूबा सदा!
लोग कहते हैं बड़ा मगरूर है!!
जो नहीं लेता बुज़ुर्गों की दुआ!
क़ामयाबी से हमेशा दूर है!!
हसरतों का कारवां पलता अगर!
तीरगी मिलती वहां भरपूर है!!
मौसमी मंज़र हसीं जिसको मिले!
मान इज़्ज़त के नशे में चूर है!!
सोचते थे मैं बड़ा बलवान हूं!
वक्त ने उनको किया बेनूर है!!
बात ये ख़ुद को बताओ हर घड़ी!
ऐ मुसाफ़िर तू नहीं मजबूर है!!
धर्मेंद्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र:9034376051
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25
शिकायत
पाक़ लहज़े में की क़िफायत है!
आपसे बस यही शिक़ायत है!!
जिंदगी के हसीन मौसम की!
मौत ही आखिरी हक़ीक़त हैं!!
दौर कैसा चला ज़माने में!
आज गुम हो चुकी सदाकत हैं!!
नेकियां जो यहां सदा करते!
पास आती नही नदामत हैं!!
मुश्किलों का मुक़ाबला करना!
अब मुसाफ़िर यही हिदायत है!!
धर्मेंद्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
संपर्क सूत्र: 9034376051