धरा
धरा करुण क्रन्दन करती
प्रतिक्षण पीड़ा से तड़पती
रसायनों को रोकना होगा
प्रकृति को सहेजना होगा
आओ मिलकर ये प्रण करें
माँ धरती की हम गोद भरें
हरी-भरी धानी चुनर से
सजाये उसका स्वरूप फिर से
मृदा,जल वायु को रक्षित करें
अनगिनत हम पेड़ लगायें
वायुमंडल की देखभाल करें
न उसको कभी दूषित करें
क्यों पेड़ पौधे काटते?
हरितिमा को भिन्न छाँटते
तीतर ,बटेर तब न दिखेंगे
घर,आंगन यूँ सुने पड़ेंगे
वृक्षों को कभी न काटना
मनुज बन प्रसन्नता बांटना
प्रयत्न करो हरियाली फैले
पशु,परिंदे पीड़ा न झेले
गर होगी सदा धरा हरी भरी
रोगों से होगी कोसों दूरी
पक्षियों के बृहत घोंसले
चहचाहट चहुंओर फैले
नियम प्रकृति के न तोड़ना
धरा को तुम स्वतंत्र छोड़ना
कर्म ये वरदान बनेगा
धरा पर यूँ स्वर्ग सजेगा
✍️”कविता चौहान”
स्वरचित एवं मौलिक