धरा रही कब से पुकार
ओ आसमान के स्वामी देख जरा,
कैसी मच रही उथल पुथल देख धरा,
धरती पुत्र की सुन ले पुकार,
दे दे थोड़ी सी वर्षा की फुहार,
टूट कर बिखर रहे अरमान,
रख ले लाज बचा ले सम्मान,
बिलख रहे भूख से बच्चे ,
खा रहे जीवन के धक्के,
निहार रहे ऊपर गगन कबसे,
आ जाये घनश्याम झटसे,
प्यासी हैं धरा, प्यासे हैं नदी नाले,
बर्षा दो ,पपीहे भी कुछ गा ले,
क्यों गये जहाँ को भूल,
तरस रहे यहाँ के फूल,
।।।जेपीएल।।।