धरा करे मनुहार…
नदिया भेजे नभ में संदेसा
धरती चाहे बूँदों का बोसा
बिरहन सूख सूख काँटा भई
बैरी बदरा अब यूँ न तरसा
मेघ बजाओ ढोल मृदंग
ले बूँदों की बारात संग
ब्याह रचाने आज पधारो
मनुहार करे धरा अंग अंग
सौंधा सौंधा इत्र लगाऊँ
इंद्रधनुष से माँग सजाऊँ
बिजुरी की पहनूँ पैंजनिया
धानी चुनर ओढ़ इतराऊँ
है अर्पण अपना उर आँगन
प्रेम सुधा बरसाओ साजन
जनम जनम तक बाट निहारूँ
मिलने का दे दो आश्वासन
धर बैठे हो गगन का कोना
कर भोले मन पर जादू टोना
बरस पड़ो रस रंजित कर दो
यही लिखा था यही है होना
रेखांकन।रेखा ड्रोलिया