धरना या षणयंत्र
“कवितायेँ तो बहुत लिखी हैं ,
पाकिस्तानी नीयत पर !
आज जरा दो पंक्ति सुना दूँ ,
घर के कुछ गद्दारों पर !
सविंधान की पुस्तक लेके ,
जो तुम रोना गाते हो !
उसी सविंधान का गाला घोटके ,
तुम सड़को पर आते हो !!
लोकतंत्र को दो टुकड़ों में ,
तुमने ऐसा बांटा है !
राष्ट्रवाद और राष्ट्रद्रोह में ,
फंसी ये भारत माता हैं !!
सत्ता पाने की लालच में ,
तुमने ऐसे कांड किये !
दंगा भड़काने की खातिर ,
तुमने जहरीले शब्द कहे !!
३७० और राम नाम पे ,
जब सब कुछ यहाँ सामान्य रहा !
नागरिकता बिल का भ्रम फैलाकर ,
तुमने शासन ध्वस्त किया !!
खुद को परदे के पीछे रखकर ,
तुमने कैसे षणयंत्र रचे !
विद्या के मंदिर में जाकर ,
देश विरोधी चरित्र गढ़े !!
शरणार्थी और घुसपैठिये में ,
थोड़ा फर्क समझ तो लो !
विरोध प्रदर्शन और दंगे में ,
थोड़ा अंतर जान तो लो !!
आजाते हो चौराहे पे ,
और टुकड़े टुकड़े गाते हो !
आधी रात में न्यायलय जा ,
आतंकी की अर्जी देते हो !!
यदि नारों से दंगा नहीं बढ़ा तो ,
सड़कों पे आजाते हो !
लोकतंत्र की अर्थी लेकर ,
यूँ आगजनी फैलाते हो !!
देश को पहले गाली दो ,
फिर सड़क पे चक्का जाम करो !
यदि कोई तुमको रोके टोके तो ,
आज़ादी का नारा दो !!
अरे जाके देखो दुनिआ में ,
ऐसी आज़ादी और कहाँ !
देश का झंडा हाथ में लेकर ,
देश को तोड़ते लोग कहाँ !!
और ये सब करने वाले कहते हैं ,
भारत में आज़ादी कहाँ ?
तुम जैसे नागों को सहने वाले ,
ऐसे सहिष्णु लोग कहाँ ?