“धरती माता”
“धरती माता”
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ये धरती माता है, क्या – क्या नहीं सहती !
एक माॅं की ही तरह हर दु:ख वो हैं सहती !
हर अच्छे-बुरे कर्मों का गवाह वो है रहती !
मनुष्य की हर कृति का राज़ वो है जानती !
इतने दु:ख सहकर भी माॅं कुछ नहीं कहती !
बस, हॅंसते-हॅंसते वो सब कुछ ही झेल जाती !
सभी जीव-जंतुओं को संतान की तरह पालती !
अपनी ही छत्रछाया में सबको ही शरण दे देती !
बदले में कभी किसी से कुछ भी नहीं वो लेती !
जन्म से लेकर मृत्यु तक की हर साधन वो देती !
हर प्राणी के जीवन-यापन का सहारा वो बनती !
हर तरह के सुख-सुविधा धरा पे उपलब्ध होते !
पर्वत, पठार, नदियाॅं, वन, कृषि क्षेत्र यहीं पे होते !
मौज-मस्ती, भ्रमण-स्थल का यहीं पे दीदार होता !
लहलहाती फसलें कृषक-जीवन का आधार होती !
ये सब धरती माता की गोद में ही फलती-फूलती !
धरती माता कितनों की ज़िंदगी को सांसें देती है !
पर हम सब इस माॅं का कितना ख़्याल रख पाते हैं !
दिन-रात क्षुद्र स्वार्थ हेतु सब दोहन पर उतर जाते हैं !
हद तब होती जब मानव हरकतों से बाज नहीं आते !
धरती माता तब जाकर अपना क्रूर रूप दिखलाती !
प्राकृतिक आपदाओं के रूप में वो गुस्सा दिखलाती !
इन घटनाओं से सबक सीखकर हम सचेत हो जाएं !
इस धरती माता को आगे किसी नुकसान से बचाएं !
आगे चलकर इस धरती पर कोई संकट ना गहराए !
समस्त प्राणी इस धरती पर चैन से जीवन जी पाएं !
ये धरती माता है, इसे माता की ही तरह पूजते जाएं !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
सर्वाधिकार सुरक्षित ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 06 नवंबर, 2021.
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