धरती मां
#डा०जय_नारायण_गिरि
“इन्दु”
धरती माय थिकीह।
अवतरणक संगहि धरा पर प्रथम स्पर्श
प्रथम ध्वनि
प्रथम स्वर
प्रथम वातायन
प्रथम रश्मि
कतेक सुखद
कतेक आत्मीय
कतेक सहज
कतेक मनोरम?
धरती विन सृष्टि कल्पना मात्र
मुदा चेतन विन कल्पना फूसि।
धरती माय थिकीह पतिराखनि
सभक इज्जति आवरू
सभक मान सम्मान
अपन बांहिमे समेटने
कतेको पहाड़
कतेको समुद्र
कतेको नदी
कतेको झील
कतेको महानगर
धरती अपन गर्भ मे रखने अछि
सोन
कोइला अवरख तेल नोन केर खान
गर्भमे रखने छथि सीता माय।
हमर धरती माय थिकीह विश्व बैंकक बाप
एक टा वालुसं छोट बीज
भऽ जाइत अछि विशाल वटवृक्ष
एक टा धानक बीज अहां जमा करू एहि बैंकमे
ओ वापस करतीह हजार गोट धान
अहां जमा करू एक टा सरिसोक गोट
ओ अहांकें देतीह अनगिनत गोट
ओ भरैत अछि हमर पेट
तें कहवैत अछि अन्नपूर्णा
हमर धरती माय
गोड़ लगै छी माय।
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